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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी लोग व्यवहार से बदनाम हो जायें, परलोक के लिए भी भयंकर समस्या उपस्थित करें. कर्म की मार अलग खाएं. उसका वर्तमान भी गया और भविष्य भी बिगड़ा. एक जरा सा निमित्त मिला और महाराज भर्तृहरि, महाराज विक्रमादित्य के बड़े भाई, जिन्होंने वैराग्य प्राप्त किया. उनके हृदय से उद्गार निकला-संसार मे मैं जहां गया, सारा ही संसार भय से भर हुआ है. "वैराग्यमेवाभयम्" वैराग्य ही ऐसी वस्तु है जहां भय का प्रवेश द्वार बन्द है. बहुत बड़े महात्मा सेठ मफतलाल के घर पर आये. रात्रि का समय था, बडे साधु प्राणी थे. एक लंगोटी के सिवा कुछ भी नहीं था एक कमन्डल रखते थे. मफतलाल का घर खुला था, कोई अतिथि आये, हमारे देश की परम्परा है कोई भी अतिथि आये, उसका स्वागत करना. जिनकी कोई तिथि नहीं होती न जाने कब आ जायें, वे पुरुष अतिथि कहलाते हैं. "न तिथिर्यस्य सः अतिथि": जिनकी कोई तिथि नहीं वह अतिथि साधु आ गये बड़ी प्रतिष्ठा थी, बड़ा मान था. विद्वान थे. मफतलाल ने कहा-आज रात्रि आप हमारे यहां विश्राम करिये. बडी प्रसन्नता से रहें. मफतलाल भी वहीं पर उनके पास सो रहा था. सोते-सोते देखा कि बाबा जी हर घन्टे उठते हैं और उठकर अपना झोला टटोलते हैं. मन में विचार आया, ये तो साधु हैं, निश्चिन्त होकर के सोएं, क्या चिन्ता है? ये बार-बार बैठकर झोली टटोलते हैं, इस झोली में क्या करामात है? मफतलाल से नहीं रहा गया, कहा-बाबा जी. आप बार-बार उठते हैं, इसका क्या कारण है? कोई बीमारी है? कोई शरीर से तकलीफ है? उसका ईलाज करायें. डाक्टर बुलाऊं?. बाबा जी ने सत्य कह दिया, परम भक्त है. यहां कहने मे कोई आपति नहीं, बोले बेटा-झोली में थोडा जोखिम है. कोई दान दक्षिणा में थोडी बहुत सोने की मोहर मिले हैं. रास्ते में आ रहा था. मन में डर था कि कहीं कोई चोरी से न लूट ले, कोई बदमाश व्यक्ति न आ जाये, रात्रि पड़ गई तो यहां भी रात्रि में घन्टा भर होता है नींद खुल जाती है और हाथ चला जाता है. यह आदत पड गई. साधु सत्यनिष्ठ थे. जो था उन्होंने कह दिया. मफतलाल ने सोचा महाराज की इस बीमारी का ईलाज तो करना है. बडा होशियार व्यक्ति था, सज्जन भी था, थोड़े समय बाद ही स्वामी को निद्रा आई. वह पूरी झोली लेकर के गया और घर के बाहर कुंआ में डाल दी. दस मिन्ट बाद अचानक बाबा जी उठे, हाथ से टटोला तो झोली नहीं. 498 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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