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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी भले ही शत्रु देखने में छोटे नजर आयें परन्तु आगे चलकर के आत्मा को भयंकर नुकसान पहुंचाने वाले हैं इसीलिए सारी चीज बतलाई कि एक छोटी सी चीज देखकर उसकी उपेक्षा मत करना क्योंकि उपेक्षा का परिणाम आगे चलकर के बडा अनर्थकारी होता है. काम, क्रोध मद, मान, लोभ, हर्ष इति षट्रिप। ये छः आत्मा के प्रबल शत्रु हैं. कल समझाया था कि काम पर कैसे विजय प्राप्त करना, चौरासी चौबीसी तक उस महापुरुष का नाम रहने वाला हैं जिन्होंने वेश्या के घर पर रहकर के चातुर्मास किया. काजल की कोठरी में रहकर के बेदाग निकले. कोयले की दलाली में भी जिनके हाथ कभी काले नहीं हुए. पाप के घर में रहकर भी जिसने पाप पर, वासना पर विजय प्राप्त की. शत्र के घर में रहकर के भी घायल नही हए. वे महापुरुष स्थूल भद्र स्वामी. पच्चीसों वर्षों में मात्र एक ऐसे पुरुष हए जिनके लिए मन में सहज ही आदर प्रकट होता है. शरीर के अन्दर निर्विकार भावना से उन्होंने अपने जीवन में साधना की. एक रोम में भी जिसके वासना नही थी, यह स्थिति प्राप्त करने के लिए उनका कैसा महान मनोबल होगा. सब प्रतिकूल संयोग थे. जरा भी अनुकूलता नही थी. ऐसी भयंकर प्रतिकूलता में रहकर भी उन्होंने अपने मन पर अधिकार जमाए रखा, जरा भी विचलित नहीं हुए. ऐसे महापुरुष के गुणानुवाद द्वारा ऐसी स्थिति हम भी प्राप्त करें कि संसार में रहकर काम, क्रोधादि शत्रुओं का कैसा भी भयंकर आक्रमण हो जाये परन्तु हम अपनी मर्यादा से जरा भी विचलित न बनें. प्राणों का मूल्य चुका करके भी इन व्रतों का रक्षण करना है. सदाचार सामान्य वस्तु नही है, आत्मा का बहुत बड़ा गुण है. इस गण को जितना विकसित किया जायेगा, उतनी ही आत्मा प्रसन्न बनेगी. वही चित्त की प्रसन्नता एक दिन आत्मा को पूर्णता प्रदान करेगी. उस स्थिति तक हमें जाना है. संसार तो ऐसे ही चलता रहेगा. कहां तक संसार को और संसार के व्यवहार को हम देखेंगे. व्यवहार तो हम लोगों ने मिलकर के निर्णय किया है. प्रकृति अपना कार्य करती है. जाने से पहले मुझे अपना कार्य पूर्ण कर लेना है. व्यक्ति को संसार के लिए फुरसत मिलती है, संसार की प्राप्ति के लिए प्रयास करता है, संसार जरूरी है परन्तु मर्यादित होना चाहिए. कुछ स्वयं के लिए भी समय निकालना चाहिए. परन्तु बाकी आदत से लाचार है. संसार के लिए पूरी फुरसत, सुबह से शाम तक रोड मापने के लिए फुरसत, दुकान में मजदूरी करने के लिए समय मिलता है, भटकने के लिये समय मिलता है, इधर उधर की चर्चा करने के लिए समय मिलता है, आत्म चिन्तन के लिए दो घड़ी भी हमारे पास में नही है. जो अति आवश्यक है. यदि कहा जाये तो कहेंगे समय नहीं है. जैसे बड़े महत्वपूर्ण ber 493 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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