________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी भावी काल को देखकर के हमारे सबके उपकार के लिए इस ग्रन्थ की रचना की ताकि जीवन का हर व्यवहार धर्म प्रधान बने. जीवन का हर क्षेत्र उपयोगी बने. जीवन का हरेक कार्य आत्मा को लाभदायक बनें. जरा सा प्रमाद अनन्त मृत्यु का कारण बनता है. यहां उस महान पुरुष ने आत्मजागृति के लिए कहा. जिस मकान में यदि प्रकाश होगा वहां पर चोर का प्रवेश पाना बहुत कठिन होगा. प्रकाश के अन्दर मकान, बंगला, सुरक्षित है यदि अन्धकार होगा तो अन्धकार में चारो का आना बड़ा सरल होता है. अनेक प्रकार के भय की वहां सम्भावना रहती है. मकान या बंगले में यदि चौकीदार है, कोई खतरा नहीं. निश्चिन्त होकर सो सकते हैं, परन्तु यदि दरवाजा खुला है और चौकीदार वहां नही है तो चोर का आना बड़ा सरल हो जाता है, सेठ आत्माराम भाई का यह बंगला है, जो हम लेकर के चलते हैं. यदि इसमें ज्ञान का प्रकाश नही रहा तो अज्ञान के अन्धकार में कर्म का चोर तो इसमें प्रवेश करेगा ही. यहां ज्ञान का प्रकाश इसीलिए दिया जा रहा है ताकि अन्धकार में भटकें नहीं. अपना रास्ता स्वयं प्रकाश में देख लें. इन विचारों के द्वारा जीवन की जागृति दी गई ताकि व्यक्ति विवेक का चौकीदार अपने मकान में उपस्थित रखे, दुर्विचार का प्रवेश न हो. जिस मकान में चौकीदार और प्रकाश होगा, वह मकान लूटा नही जायेगा. जहां सम्यक ज्ञान का प्रकाश होगा और विवेक का चौकीदार जिस बंगले में रहेगा, उस आत्माराम भाई के मकान में कभी लूट की सम्भावना नहीं रहेगी. ये दोनों ही आवश्यक हैं. लेकिन भगवान महावीर की भाषा में अन्तर कर्म के शत्रुओं को मान करके चलने वाला व्यक्ति सज्जन है. जो व्यक्ति बाहर से शत्रु मानता है वह शैतान है, उसके अन्दर वैर की भावना है, कटुता भरी हुई है और न जाने कब वह अनर्थ कर जाये. जो व्यक्ति अपने अन्तर में कर्म को शत्र मानकर के चले, वह व्यक्ति महान बनता है, सज्जन कहलाता है. अन्तरात्मा में अपने ही दुर्विचार को शत्रु मानकर के चले. बाहर कोई शत्र नहीं है, यह हमारी दृष्टि का विकार है, बाहर तो परिणाम है, कारण तो अन्दर छिपा है, कारण तो अपना कर्म है. बिना कारण के कोई कार्य जगत में नहीं होता. आप कारणों को खतम कर दीजिए, कार्य स्वयं नष्ट हो जायेंगे. अन्तर से शत्रुता खत्म कर दीजिए, बाहर के सारे ही शत्रु मित्र बन जायेंगे. परमात्मा ने क्षमा की मंगल भावना से कषाय पर कैसे विजय प्राप्त करना? किस प्रकार से अपने अन्तर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना? वह सारा ही रास्ता उन्होंने बतलाया है. वह टैक्नीक इन सूत्रों द्वारा बहुत कुछ समझाई भी है. आज फिर कहूं क्योंकि इस अध्याय का यह अन्तिम सूत्र है. जो विषय चल रहा है कि ये षट् रिपु आत्मा के बडे शत्रु है, उनका नाश हमें करना है. 492 For Private And Personal Use Only