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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %Dगुरुवाणी: ATM पकड़कर के लाये, सख्त से सख्त उनको क्या सजा देनी है? आपका क्या आदेश है? आपके यहां से ये बर्तन चोरी करके गये, वह मैने बरामद कर लिये हैं. यही व्यक्ति थे, यह सत्य हो गया. ये लोग निर्दोष हैं, मेरे साथ कोई गलत व्यवहार नहीं हुआ, रात्रि के अंधकार में ऐसे ही चोट लग गई. और जो होना था. हो गया परमात्मा को याद रखता हूं. बाकी सब याद मैं भूल जाता हूं. कौन आया, कौन गया. मुझे कुछ मालूम नहीं. यह शरीर धर्म हैं किसी ने चोट पहंचाई सहन कर ली. पर्वकाल में मैंने कोई पाप किया. सजा मिल गई. यह निर्दोष हैं इन्होंने मेरे साथ कोई गलत व्यवहार नहीं किया. कलेक्टर कहता है-गलत व्यवहार नहीं किया तो बर्तन इनके घर में से कैसे निकले? बर्तनों की इनको जरूरत थी. मैंने भेंट कर दिया. इन्होंने चोरी नही की. मेरा भी तम से खास आग्रह है. अगर तुम मेरे भक्त हो तो इनको छोड दो. ये निर्दोष हैं, यह मेरा आदेश है. साधु सन्त किसी को जगत के बन्धन में डालने नहीं आते. वे तो बन्धन से मुक्त कराने आते हैं. एक महान आत्मा, सदाचारी जीवन जीने वाली आत्मा, उसके व्यवहार की दृष्टि देखिये. इतना भयंकर मार मारने वाले दुष्ट पुरुष, बर्तन आश्रम से ले जाने वाले, उनको निर्दोष कहकर छुटकारा दिला दिया. पर्युषण की मंगल आराधना में महावीर के परमोपासक. हमारे यहां वर्ष भर का चौपड़ा पंचायती उसी दिन खोलेगे, नहीं करने जैसा नाटक उसी दिन करेंगे. नही बोलने जैसे शब्द उसी दिन निकालेंगे. सारी प्रदर्शनी हो जाती है इसीलिए हमारी आराधना फलती नहीं. निष्फल जाती है, उसके पीछे यही कारण है. उसके अन्दर क्षमा मंगल भूमि नहीं. पुलिस स्टेशन में सौ गाली सुनकर के आ जायेंगे, स्टेशन में सौ गाली सुनकर के आ जायेंगे, आशीर्वाद समझकर के आएंगे. परन्तु यदि कोई धर्म प्रेमी आत्मा दो शब्द आत्मा के लिए कहे. अगर कोई साधु सज्जनता से दो शब्द आपकी आत्मा के हित के लिए कहे तो चेहरा धनुष जैसा तन जायेगा. पुलिश स्टेशन में वीतराग का रूप धारण करेंगे. अप्पाणम् बोसिरामी वह गाली भी आशीर्वाद लगती है. कहां पर्युषण कल्प बने. कल्प सूत्र श्रवण करके जीवन को कल्पवक्ष जैसा बनाना है जो परम्परा में मोक्ष का फल दे. क्रोधावस्था वही खतरनाक अवस्था में है. आज समय हो चुका है कल, क्रोध के विषय में समझाऊंगा. "सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम्" 490 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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