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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: मेंढक सर्प का भक्ष्य है. सर्प देखे तो तुरन्त खा जाये. परन्तु वह इसके रक्षण के लिए फन निकाल करके बैठा है. इसकी दयालुता देखी, यही आश्चर्य / मरे हुए सन्त के परमाणु में भी यह ताकत. उनकी समाधि पर आये हुये सर्प का भी क्रोध शान्त हो गया. शंकराचार्य ने निर्णय किया कि मेरा सर्व प्रथम मठ यहीं पर बनेगा. वह मठ आज भी मौजूद है. श्रृंगेरी मठ श्रृंगेरी ऋषि के नाम से ही उस आश्रम का निर्माण किया. उन्होंने सर्व प्रथम अपना केन्द्र बनाया. यह घटना तो हम हर रोज देखते हैं. ब्रह्मचर्य के प्रभाव से आत्मा को क्या बल मिलता है, उसका तो अनेक बार परिचय किया. ऐसी दिव्य शक्ति अन्तर से प्रकट करता है जो शब्दों से नहीं समझायी जा सकती. वह अनुभव की वस्तु है. ऐसी प्रचण्ड शक्ति का जन्म अक्रोधावस्था में आता है. क्षमा की मंगल भावना से मिलता है. ऐसे एक नही, अनेक प्रसंग मिलेंगे उस वर्तुल में चले जाएं. तिरुचनापल्ली हम गये थे. रमण महर्षि के आश्रम में बहत बडे मन्दिर की वहां प्रतिष्ठा थी. बहुत बड़ा धार्मिक केन्द्र है. जब वहां पर गया, उस जगह पर मैंने देखा जहां आश्रम है बहुत बड़े-बड़े व्यक्ति रमन महर्षि के पास दर्शन के लिए आया करते. महर्षि मठ के पास बहुत से विदेशी उनके दर्शनों के लिए आते थे. वहां का वातावरण इतना सौम्य और शान्त है. बहुत विशाल आश्रम है. जब मैंने पूछा तो वहां के लोगों ने उनका जीवन प्रसंग बतलाया कि उनकी लघुता कैसी थी. उस आत्मा का प्रेमभाव कैसा? उसका एक नमूना बतलाया. ____ आश्रम में सर्व प्रथम जब रमण महर्षि आये. कई बार वहा सर्प बिच्छू निकलते उनके शरीर पर पाये जाते वे ध्यान मग्न बैठे रहते इस आश्रम में कभी किसी सर्प ने किसी को डसा नहीं, बिच्छू ने डंक मारा नहीं. कभी जंगली जानवर ने आकर के किसी जीव जन्तु को नुकसान पहुंचाया नहीं. एक आत्मा के मंगल भावना के ये परिणाम, वहां का वायुमण्डल परिवर्तित हो गया. वहां पर रात्रि में जब चोर चोरी करने आये, चोरों को जब आश्रम में कुछ नहीं मिला, सन्तों के पास क्या होगा. सन्त थे. उनके पास कुछ था नही. चोरों ने देखा कि इसने जरूर कहीं छिपा कर रखा है. इतने बड़े-2 आदमी इनके पास दर्शन करने आते हैं जरूर दान दक्षिणा देते होंगे. चोरों के मन में ऐसा एक गलत विचार था. रमण महर्षि को उन चोरों ने रात्रि को मारा हाथ पांव में बहत मारा, तो भी एक शब्द नहीं बोले. आश्रम में जब कुछ न मिला तो खाने के बर्तन पड़े थे. वे बर्तन लेकर चले गये. वहां अग्रेज कलेक्टर था, जब उसे मालूम पडा, उनका परम भक्त था. हकीकत मालूम पड़ी, पुलिस के साथ वंहा आये, गांव गांव में चोरों की खोज शुरू हो गई. एक शब्द भी रमण महर्षि ने इस विषय में नहीं कहा.. चोरों को पकड़ करके लाया गया. लाकर के रमण महर्षि से पूछा-भगवन्, आप बतलाइये, आपको कष्ट देने वाले, हाथ पांव तोड़ देने वाले, यही सब दुष्ट पुरुष हैं. इन्हें Marall 489 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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