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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir FO -गुरुवाणी होने का कारण क्या था, जो भूल थी, उसकी सजा मिली, कर्म का व्यवहार तो सब जगह एक समान होता है. ___ ऋषि मुनियों का यह अपूर्व चिन्तन. जरा विचार में लाइये. क्रोध और कषाय का परिणाम कितना खतरनाक होता है. हृदय में जहां अमृत का उत्पादन होना चाहिये वहां से क्रोध जहर उत्पादन करता है. पर्युषण पर्व की आराधना क्रोध की सबसे बड़ी दवा है. इसका सबसे बडा उपचार है, क्षमा की मंगल भावना. यह भावना कैसे आये? किस प्रकार से इसको लाना चाहिये? जहां तक क्षमा की भावना नहीं आये, वहां तक पर्युषण आराधना निरर्थक है. कल्पसूत्र के अन्दर आता है: जो उव्व सम्मई अव्वम् तस्स अत्थी आराहना जो न उव समई अव्वम् तस्स नत्थी आराहना भगवान ने कहा जो आत्मा पयुर्षण महान पर्व में, अपने हृदय को शुद्ध करके क्षमापना करे, उपशम भाव शान्त अवस्था में रहे. उस आत्मा की आराधना पर्युषण सफल. बाकी तो नाटक है. अपने हृदय को जरा टटोलें देखें मंगल कामना करें, भगवन, मेरे हृदय में भी क्षमा की भावना आ जाये. सामान्य व्यक्तियों में भी कई बार हम इस प्रकार की भावना देखते हैं. एक मैत्री की भावना आ जाये तो सामन वाले व्यक्ति में सदभाव उत्पन्न हो जाता है, वह परमाणु प्रेम का साम्राज्य कायम करता है शंकराचार्य पूरे देश में परिभ्रमण कर रहे थे. मन में एक विचार किया कि मेरा मठ किस जगह हो. घूमते-घूमते दक्षिण में गये. वहां जाकर के किसी सन्त पुरुष के आश्रम में ठहरे उनको मालम पडा भयंकर गर्मी के अन्दर एक मेण्ढक घायल हो गया था. किसी कारण से वहां एक सर्प आया सर्प ने फल तानकर उसको छाया देनी शुरू की. शंकराचार्य ने विचार किया, कि यह मेरी आंख का कोई भ्रम तो नहीं है यह कोई जाद् तो नहीं है? इसमें क्या हकीकत है? अन्य ऋषि मुनियों से शंकराचार्य ने पूछाजो यह देख रहा हूं, यह सत्य है या असत्य है? ऋषि मुनियों ने कहा-भगवन! यह तो पूर्ण सत्य है, ऐसी घटनायें तो हमें बहुत देखने को मिलती हैं यहां पर. कारण: यहां पर श्रृंगेरी ऋषि हुए हैं. महान तपस्वी थे श्रृंगेरी ऋषि, क्षमा की मूर्ति थे. उन्हें कोई आकर गाली दे तो भी उनके अन्दर से आशीर्वाद निकलता था. महापुरुष थे. उन्हीं की यह तपो भूमि है. यहीं पर तप किया था. उनकी मृत्यु के बाद उनकी समाधि यहीं पर रखी गई. उसका प्रभाव इस से जमीन में आने वाले जीव जन्तु अपना वैरभाव भूल जाते हैं. यहां ऐसी भावना उनमें आ जाती है. जो आप आखों से देख रहे है. कन 488 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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