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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी स्वामी दयानन्द सरस्वती ब्रह्मचारी पुरुष थे, उन्हें समाप्त करने के लिये दो तीन बार खाने में जहर दिया गया, परन्तु ब्रह्मचर्य एवं सदाचार पालन करने वाली आत्मा थी, योगशक्ति के प्रभाव से जहर का असर मिटा दिया. अजमेर में एक दिन दयानन्द सरस्वती को दही में मिलाकर विष दिया गया. दुश्मनों का षड्यन्त्र था और देने वाला व्यक्ति भी उनका ही रसोइया ठाकुर जगन्नाथ था. सुबह वे दही लिया करते थे. दही लेने के बाद उन्हें मालूम पड गया. कि इसके अन्दर तीव्र जहर मिलाया है. मेरा बचना संभव नहीं. शरीर में वह ताकत नहीं कि जहर का प्रतिकार कर सकू. बिस्तर पर सोये थे. अवस्था थी. जहर का आक्रमण था मूर्छित होने की तैयारी थी. अपने रसोइये को बुलाया. बुलाकर कहा - पैसे के प्रलोभन में आकर तुमने यह पाप किया. ठीक है मैं कल जाने वाला आज चला जाऊंगा. मुझे कोई चिन्ता नहीं परन्तु मुझे तो चिन्ता है, मेरे पीछे तेरे परिवार का क्या होगा, अगर तू यहां रहा. और पुलिस को मालूम पड़ गया कि तुमने मुझे जहर दिया है. तो तझे तो फांसी पर लटाकायेंगे. तेरे परिवार की दशा क्या होगी? मेरा यह निवेदन है मेरे पास ये 10000 रुपये पड़े हैं किसी भक्त ने दिया है. ये तू ले जा, तेरे परिवार के लिए और यहां से जल्दी से जल्दी चला जा. मैं नहीं चाहता मेरी मौत के बाद इसकी सजा तेरे को मिले. साधु सन्तों का जीवन व्यवहार कैसा? उन्हें मालूम है इस व्यक्ति ने मुझे जहर दिया है. परन्तु यह सदाचार का पुण्य प्रभाव जो हमेशा सद् विचार का पोषण करता है. कभी दुर्विचार को आने नहीं देता. मरते समय भी दुर्विचार नहीं आने दिया. मन में यह विचार नहीं आया, मेरा शत्रु है, मुझे मार करके जा रहा है. दस हजार रुपया देकर उसे विदाइयां दी. तू चला जा. तुमको जाना हो चले जाओ, और परिवार के भरण पोषण में तुम्हें जितना उपयोग करना हो दस हजार से करना. सौ साल पहले दस हजार का क्या मूल्य था. आप सोच लेना. ऐसा कौन व्यक्ति है जो मारने वाले को बचाने का प्रयास करे. यह सदाचार का पुण्य प्रभाव है. ब्रह्मचारी आत्माओं के विचार में कभी दुर्विचार का प्रवेश नहीं होगा. इसीलिये साधु की अवस्था में, साधना के अन्दर इसको विशेष महत्व दिया. जितना सुन्दर इस व्यवहार का पालन कर सके तो सारी साधना को वह सक्रिय बनायेगा. सारी साधना सुगन्धमय बनेगी. इसमें बड़ी प्रचण्ड ताकत है. हमारे पूर्वजों ने निरर्थक इसका गुणगान नहीं गाया है, जहां जायें वहीं पर इसका चाहे वैदिक परम्परा हो, चाहे बौद्ध हो, चाहे जैन परम्परा हो, या अन्य किसी भी धर्म, मत, पंथ में जायें ब्रह्मचर्य का गणगान हर जगह मिलेगा. यह संगीत हर जगह सुनने को मिलेगा. Malo 486 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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