________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी ___ कोयले के गोदाम में रहना पड़े और कपड़े पर दाग न लगे तो आश्चर्य होगा. काजल की कोठरी में रहकर के बेदाग निकलना कोई सामान्य व्यक्ति का काम नहीं. षटरस भोजन दुष्काल और फिर अधिमास आ जाये, कैसा भंयकर होता है. एक तो वर्षा ऋतु ऊपर से खाने को षटरस भोजन. फिर चित्रशाला. वहां चातुर्मास करना कसौटी कैसी? ये आग के साथ खेलना था. ऐसी परिस्थिति में स्थूलभद्र महाराज ने उसी जगह चातुर्मास किया. मन का संकल्प था. जिस जगह मैंने पाप का पोषण किया. उस निमित्त को आराधना का माध्यम बनाऊं. उसे परम श्राविका बनाऊं. कोशा ने देखा. आज नहीं तो कल यह चलायमान हो जायेंगे. बहुत प्रयत्न किया. प्रयत्न करते-करते कोशा थक गई. निराश होकर झुक करके निवेदन किया. भगवन्! अब आप जो आदेश देंगे, शिरोधार्य हैं. जीवन पर्यन्त इस पाप का त्याग कर दिया. कोशा परिचय के बाद चार महीने परम श्राविका बनी. पाप से मुक्त हो गई. साधु सन्तों के परिचय से जीवन को सुगन्धित बना लिया. चातुर्मास पूर्ण होने के बाद जब वे आये. गुरु भगवन्त विशिष्ट ज्ञानी थे. ज्ञान के द्वारा उस प्रकाश में देख लिया. वह महापुरुष जिसके एक रोम में भी विकार का प्रवेश नहीं हुआ. विचार के अंदर विकार का बिल्कुल अभाव. ऐसी पवित्रता. चार महीना ऐसी कसौटी से निकल कर के आए हैं. इतने समर्थ युग-युग प्रधान आचार्य उनके गुरू सम्भूति सूरि. महाराज का आशीर्वाद स्थूलभद्र महाराज पर था. जैसे ही स्थूल भद्र चातुर्मास करके वहां आए. गुरु महाराज स्वयं उठे, उसे लेने गए, उसका स्वागत किया, उसे धन्यवाद दिया. एक बार नहीं तीन बार कहा. दुक्कर, दुक्कर, दुक्कर. अति दुष्कर कार्य तुमने किया धन्यवाद. कोई शब्द नहीं छाती से लगा लिया. ___ गुरु का प्रेम, गुरु का आशीर्वाद और गुरु का ऐसा स्वागत एक शिष्य के प्रति. वहां जो दूसरे साधु थे चार-चार महीने का तप करने वाले सिंह गुफा में रहने वाले, सांप के बिल के पास चातुर्मास करने वाले. उनके मन में जलन पैदा हुई, ईर्ष्या हुई कि चार महीना, माल पानी उडाकर के आया. न सर्दी न गर्मी लगी न वर्षा का एक बिन्दु पानी गिरा, न कोई तप न कोई. त्याग. और गरु ने कहा-बड़ा दुष्कर कार्य तुमने किया. मन में जरा ईर्ष्या हुई. उस महान साधु को धन्यवाद देने के पीछे प्रयोजन सही थे कि ऐसी अनूकुलता में रहकर के विषय पर विजय प्राप्त करना दुश्मन के घर में रहकर के दुश्मन को परास्त करना यह कोई सामान्य काम नहीं. इतनी दुष्कर साधना स्थूलभद्र महाराज ने की, तब जाकर चौरासी तक उनका नाम कायम रहेगा. सारी आराधना के अन्दर इस आराधना को बहत महत्व दिया है. सारे व्रतों में इसको सम्राट तुल्य माना गया है. इसे दीपक की उपमा दी गई. बारह व्रत की पूजा में इसे दीपक की उपमा दी गयी है, कभी इसका आनन्द लीजिये. ह 485 For Private And Personal Use Only