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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %Dगुरुवाणी समय में शहरों में साधु बहुत कम रहते. चतुर्मास भी प्रायः एकान्त में करते. भिक्षा के लिए गांव में जाकर भिक्षा ले आते. शहरों में रहते नहीं. पर्युषण मात्र साधुओं के लिए होता, प्रवचन मात्र साधुओं के लिए होता, अपने आचार की जानकारी प्रतिवर्ष उसमें से प्राप्त करते, प्रेरणा प्राप्त करते. उस समय ये पर्युषण पर्व भी इस प्रकार से नहीं मनाया जाता था. यह तो हजार वर्ष से शुरू हुआ. ध्रुवसेन राजा के समय से. __जब गुजरात में ध्रुव सेन राजा ने गुरु भगवान से प्रार्थना की कि भगवन् यह उपदेश सुनने का अवसर हमें भी प्रदान करें संघ में उत्साह बनेगा, प्रजा में आनन्द आयेगा, पर्व का उल्लास बढ़ेगा. तब हमारे आचार्य भगवन्तों ने यह निर्णय लिया और संघ के समक्ष भगवान के 980 वर्ष बाद यह परम्परा चालू की तब से संघ के समक्ष यह प्रवचन दिया जाता है. इससे पहले तक तो मात्र साधुओं के लिए था. ऐसी परिस्थिति में किसी साधु ने आदेश मांगा कि भयंकर नाग रहता है, उसके बिल के पास जाकर के मैं चातुर्मास करू.. किसी ने आदेश मांगा कि कुएं के ऊपर पालपुरस्थ खड़े रहकर चातुर्मास करूगा. आप साधना तो देखिये. चार-चार महीने तक उपवास और सतत जागरण में जरा भी प्रमाद करे तो कुंआ में गिर जाये. उसके पालपर खडे रहकर चातुर्मास करूंगा. ऐसी परम साधक महान आत्माएं थीं. सर्प के बिल के पास चातुर्मास करूंगा, सतत जागृति बने रहे. मेरे प्रेम के वातावरण में आनेवाला क्रोधित सर्प भी शान्त हो जाये, सिंह गुफा का वास. जहां भयंकर सिंह विकराल सिंह रहता है. उसकी गुफा के पास चातुर्मास करूंगा. कैसी कठोर तपश्चर्या उस काल में थी. कितना गजब का मनोबल उन आत्माओं के पास था. अपनी साधुता में कितना विश्वास था, उन आत्माओं के पास. स्थूलभद्र भगवन्त ने गुरु से निवेदन किया- कि मगध में कोशा वेश्या के यहां चातुर्मास करूंगा. समझ गये कितनी खतरनाक याचना थी? जहां पर पर्व काल में 12 वर्ष तक भोग भोगे, अगर उसकी एक भी स्मति इसमें आ जाये तो सारी साधना नष्ट हो जाये. इसकी स्मृति मात्र से मन में चंचलता और व्यग्रता लेकर आ जाये. परन्तु संभूतिसूरि ने आशीर्वाद दिया कि जाओ खुशी से चातुर्मास करो, मेरा आशीर्वाद है. कोशा को जब मालूम पड़ा, बडी प्रसन्नता हुई. साधु बनकर के आये. उस जमाने में संसारी और आज साधु बनकर के मेरे द्वार पर आये. बडा स्वागत किया. चातुर्मास का समय और वह भी स्थान कैसा-चित्रशाला चारों तरफ बहुत भय का वातावरण जितने भी चित्रशाला में चित्र थे वे विकार को उत्पन्न करने वाले थे. विषय को पोषण करने वाले थे. ऐसे हाव भाव मिले चित्र. उस चित्रशाला में महाराज स्थूलभद्र को स्थान दिया गया. काना 484 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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