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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: पसीने से आपके अन्दर चला जायेगा और आपको खत्म कर देगा. उसका स्पर्श इतना / खतरनाक होता है. यह आदेश तुझे मानना होगा, जैसे ही राज दरबार में गये. झुककर राजा को अभिवादन किया, श्रीयक अंगरक्षक था. तलवार निकाली और गर्दन पर चलाई. गर्दन अलग कर दी. सारे दरबारी स्तब्ध रह गये पिता की हत्या, वो भी श्रीयक द्वारा. इसमें क्या रहस्य है. राजा भी विचार में पड़ गया. जो चीज कभी होने वाली नहीं. वह कैसे घटित हो गई. श्रीयक को बुलाकर कहा-तूने यह क्या किया. हजुर मेरा कर्त्तव्य था, उसका पालन किया. राजा का रक्षण करना मेरा धर्म है. मैं नहीं मानता. इसके अन्दर जरूर कुछ कारण होना चाहिए. पिता ने कहा राजन। मैं क्या करू, अंतिम समय कहा था कि राजा के दिमाग से भ्रम निकालने का यही एक उपाय है. सारी हकीकत जब सामने आई, तब मालूम पड़ा. अहो, इतना बडा अनर्थ हो गया. अब पश्चात्ताप करने से क्या निकलेगा. जो होना था सो हो गया. पिता की राजमुद्रिका लेकर के स्थूल भद्र के पास कोष वेश्या के यहां भेजा गया. कुल परम्परा से महामन्त्री का पद बड़े को दिया जाता था. स्थूल भद्र को आमन्त्रित किया गया. पिता की मृत्यु का समाचार सुन जब उसकी मोह निद्रा टूटी. जैसे 4. बारह वर्ष गुजर गये थे. युग परिवर्तन हो गया.. यहां आकर के जब परिवार से हकीकत जानी, पिता की ऐसी दर्दनाक मृत्यु हुई. एक व्यवहार को लेकर के राज दरबार में गये, राजा ने उन्हें आमान्त्रित किया और अंगूठी निकाल कर दी. ये महामन्त्री का पद मेरे आग्रह से आप स्वीकार करें. ऐसा वैराग्य उस समय स्थल भद्र महाराज को आया. इतना बड़ा राज्य का पद, अपार वैभव सुखी सम्पन्न परिवार उन्होंने कहा-ऐसा विचित्र संसार जिसके लिए हमारी तीन पीढ़ियों ने अपना खून पसीना दिया. अपने जीवन का बलिदान कर दिया. जरा सी बात को लेकर के इतना बड़ा अनर्थ कि मेरे बाप की इस प्रकार मौत हुई. अंगूठी राजा की तरफ फैंक दी कि मुझे नहीं चाहिये, तुम्हारी अंगठी अपने पास रखो. वहां से चले गये और सीधे संवृद्धि विजय महाराज के पास नतमस्तक हो गये. और कहा भगवन ऐसे दगाबाज संसार में एक क्षण भी मझे नहीं रहना. भोगों को भोगने वाला स्थल भद्र ने जब गुरु महाराज के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर दिया. पिता की मौत वैराग्य का कारण बन गई. विरक्त बन गया. गुरु भगवन के पास शिक्षा दीक्षा हुई. आचार्य स्थूल भद्र महाराज ने ऐसा जीवन निर्माण किया एवं पूर्व का ज्ञान उन्होंने प्राप्त किया. चातुर्मास का समय जब नजदीक आया जितने भी वहां साधु थे, महान तपस्वी साधु, चार-चार महीना उपवास करने वाले साधु. साधुओं ने चातुर्मास की आज्ञा मांगी. पहले 483 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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