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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी / चाहिय. देता हूँ. अपने घर वालों को मिलकर के आ जाओ फिर तुम्हें सजा दी जायेगी, तुम्हारे जैसा गद्दार आदमी हमारे राज्य में नही चाहिये. शब्द क्या थे, उसके लिए तो मौत के बराबर थे. महामन्त्री मन में समझ गये, राजा के मन की शंका का निवारण अब किसी तरह होने वाला नहीं. कोई वकालत यहां चलने वाली नहीं. घर पर पूरे परिवार को बुलाकर के कहा कि अब मेरे जीवन का अंतिम समय है. ऐसे भी वृद्ध हो चुका हूं. परमात्मा जिनेश्वर के शासन में मैंने सुन्दर आराधना की है. मरने का कोई दुख नहीं, दर्द नहीं, बडे शुद्ध भाव से राज्य और प्रजा की सेवा के लिए इन शस्त्रों का निर्माण कराया. राजा को भेंट देने के लिए शादी पर लेकिन हमारे विरोधियों ने गलत प्रचार कर दिया. परमात्मा महावीर स्वामी की बदनामी न हो, यह मेरा तिलक कलंकित न हो जाये, प्रतिदिन परमात्मा की उपासना पूजा करने वाला. महामन्त्री कहता है "मेरा तिलक कंलकित न हो जाये. मेरे कुल को कलंक न लगे." ऐसा उपाय मैंने सोच रखा है. मौत तो आने वाली है. श्रावक अपने जीवन के अन्दर नितान्त वफादार होता है. अपनी चिन्ता नहीं. मैं मर जाऊं. उनकी चिन्ता नहीं है. बदनामी हो जाए कोई चिन्ता नहीं, मेरा धर्म मेरे निमित्त से बदनाम नहीं होना चाहिये. धार्मिक व्यक्तियों का यह गौरव होता है. मेरा धर्म बदनाम नहीं होना चाहिये. मन में दृढ़ निश्चय किया. श्रीयक को बुलाया. श्रीयक राजा का अंगरक्षक था. शकटार राज्य के महामन्त्री थे. श्रीयक को बुलाकार कहा बेटा तू मेरा पुत्र है. पिता की आज्ञा का पालन करना तेरा धर्म है. "हां, पिता जी." ___ "तुम मुझे वचन दो जैसा आदेश राजा दे, वैसा पालन तुम्हें करना होगा. तुम जानते हो तुम्हारी नौकरी जिस बात की है तुम राजा के अंग रक्षक हो." अपने को तुमको कलंक से बचाना है. मैंने उपाय सोच लिया है. जैसे ही मैं राजदरबार में जाऊं और झुक कर राजा को अभिवादन करने नमस्कार करूं, तलवार निकाल कर मेरी गर्दन अलग कर देना. एक मात्र यही उपाय है. सत्य की रक्षा के लिए कोई उपाय नहीं. राजा के मन की शंका को निकालने का मात्र यही उपाय है और अगर नहीं किया तो परिवार कत्ल कर दिया जाएगा. नहीं तो मेरा एक का बलिदान होगा. प्रजा के अन्दर अविश्वास फैल जायेगा. मेरा कुल, मेरी जाति, मेरा धर्म बदनाम होगा. मैं जो कह रहा हूं, सोच समझकर कह रहा हूं. तू मुझे वचन दे, मेरी आज्ञा का उल्लघंन नहीं करेगा. श्रीयक शायद समझ गये. वचन दे दिया. पिता ने कहा-मैं तो विष लेकर जाऊंगा तुझे पितृहत्या का पाप नहीं लगेगा. जैसे मैं झुककर के अभिवादन करूं मैं अंगूठी को मुंह में डाल लूंगा. अगर यह विष आपके जूते के उपर भी डाल दिया जाये तो आपके पद 482 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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