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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी साधना का मूल्य आपकी दृष्टि में है ही नहीं. वह कुत्ता दूध आदि बिगाड़ देगा इसकी आपको बड़ी चिन्ता है. आप अपनी प्रणबद्धता को भी तिलांजलि देकर किसी भी तरह आप उस कुत्ते को निकालने का प्रयास करेंगे. मेरा इतना ही अभिप्राय है कि जो एक लीटर दूध का त्याग नहीं कर सकता वह इस संसार का त्याग किस तरह से कर पाएगा? यह कैसी भयंकर आसक्ति है? एक छोटी-सी चीज़ में उसकी आसक्ति छिपी हुई है और उसके अन्दर यह विवेक नहीं है और न ही यह तात्विक दृष्टि विकसित है कि यह सोच सके-मैंने इस लोक में क्यों पदार्पण किया है तथा मैं तो कुछ लेकर तो नहीं आया था ? एक बार कोई चौकीदार गोरखा जा रहा था. रास्ते में सौ का नोट पड़ा हुआ पाकर मुदित हो गया और उसे उठाकर जेब में रख लिया. थोड़ी-सी दूर आगे गया तो उसका एक मित्र मिल गया. मुफ्त का पैसा था. बिना पसीना उतारे मिला था. मित्र को बुलाया और कहा कि चाय पी कर के आएं चाय पीने के लिए वह होटल में गया नाश्ता भी किया. परन्तु जैसे ही चाय, नाश्ता कर के वह पेमेंट करने के लिए काउण्टर पर आया तो पॉकेट में देखता है कि पाकेट खाली. उसका सारा चेहरा उतर गया, निराश हो गया. उसके साथी ने पूछा कि अरे भाई क्या बात है? एकदम चेहरे पर परिवर्तन कैसे आया? क्या बतलाएं! रास्ते में निकला था – एक सौ का नोट मिला. मेरे मन में आया कि चलो इसका उपयोग करें और इसी बीच तुम मिल गए और इच्छा हुयी कि साथ-साथ नाश्ता करें और चाय पीएं परन्तु यहां तो कोई पाकेट ही साफ कर गया. ___बड़ा सुन्दर दार्शनिक उसका मित्र था. उसने कहा कि अरे इसमें चिन्ता की क्या बात है? तुम घर से निकले तो कुछ था नहीं. रास्ते में मिला और रास्ते में गया. इसके लिए हंसना क्या और रोना क्या? अपनी पूर्व स्थिति पर तो विचार करो. आप ज़रा-सी आत्म-दृष्टि प्राप्त करो, हम जन्में तो क्या लाए थे? और जाएंगे तब लंगोटी भी रहेगी? नहीं, फिर संसार के मार्ग में पूर्व के पुण्य से यदि पैसा मिल गया तो उसका क्या आनन्द और यदि कर्म राजा ने पाकेट काट लिया और वह पैसा चला गया तो उसके लिए क्या रोना? मन को यदि आप समझाने का प्रयास करें तब तो यह मन मान लेता है. यह सारा ही उपद्रव मन का है, इसीलिए ज्ञानियों की भाषा में कहा गया है - मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। संसार के बन्धन से मुक्त होने का साधन मन है. मन ही वह चाबी है. तिजोरी के अन्दर बहुत सारा वैभव रहता है परन्तु चाबी एक होती है. आप उससे तिजोरी खोल भी सकते हैं, बन्द भी कर सकते हैं. राइट टर्न दीजिए - खुल जाएगी, लेफ्ट टर्न दीजिये तिजोरी बन्द हो जाएगी. चाबी एक है और काम दो हैं. R हना 22 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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