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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी उस महान पुरुष का नाम लिया जाता है, जो वर्तमान काल में काल विजेता के रूप में | माने गये हैं. ___ "मंगलम् भगवान् वीरो, मंगलम् गौतमः प्रभुः" सर्व प्रथम परमात्मा जिनेश्वर जिनके धर्म शास्त्र में धर्म की आराधना करते हैं. हमारे जीवन पर जिनका सर्वोपरि उपकार है तीर्थंकर महावीर. उसके बाद प्रमुख शिष्य, प्रथम गणधर इन्द्रमूर्ति गौतम, मंगल के रूप में उनका नाम स्मरण किया जाता है. परमात्मा का जिनेश्वर का नाम और तुरन्त गौतम का नाम उसके बाद “मंगलम् स्थूलभद्राद्याः जैन धर्मोस्तु मंगलम्" धर्म मंगल भी बाद में, यह विशेषता देखना, स्थूल भद्र महाराज का कैसा जीवन था पूर्व काल का, अंधकार मय, और कैसा सदाचार का परम प्रकाश प्राप्त किया. भगवान महावीर का नाम एक चौबीसी तक रहेगा. स्थूल भद्र महाराज का नाम चौरासी चौबीसी तक का नाम रहने वाला है. चौरासी चौबीसी किसको कहा जाता है- असंख्यातकाल चला जाता है एक चौबीसी में. ऐसी चौरासी चौबीसी तक स्थूल भद्र महाराज का नाम कायम करने वाला हैं. महावीर का भी नहीं, गौतम का भी नहीं, किसी तीर्थंकर का नहीं, कैसा आश्चर्य. ऐसा अपूर्व नाम, कर्म उस आत्मा ने उपार्जित किया, जब-जब धर्म का शासन स्थापित होगा, जब-जब धर्म का तीर्थंकर परमात्मा उपदेशना देगा. उस समय स्थूल भद्र महाराज का प्रसंग उस उपदेशना में आयेगा, इस तरह उनका नाम चौरासी चौबीसी तक चलेगा. यह ब्रह्मचर्य का प्रभाव, चौरासी चौबीसी तक उनका नाम कायम रहेगा. कैसा परिवर्तन आया. पाटलिपुत्र में जगत प्रसिद्ध वेश्या थी. बारह वर्ष तक उसके साथ रहने वाले मगध के महामन्त्री. परमात्मा महावीर का परमोपासक, स्थूलभद्र महाराज पटना के थे. शकटार महामन्त्री थे, वंश का साम्राज्य चलता था. __ महामन्त्री शकटार जाति से ब्राह्मण थे. परन्तु धर्म से परमात्मा महावीर के परम उपासक थे. ऐसी परिस्थिति में बारह वर्ष तक स्थूल भद्र कोशा वेश्या के यहां राज महल में रहे. सामान्य वेश्या नही थी, उस जमाने में करोड़ों की सम्पति उसके पास थी. अपूर्व प्रकार की नृत्यकला उसके साथ थी. अपूर्व संगीत था. उसके जीवन में पैसे की कोई कमी नही थी. और स्थूलभद्र को भी पैसे की कोई कमी नही थी. शकटार महामंत्री थे, बहुत बड़ा व्यापार साधन उनके साथ था. द्रव्य की कोई कमी नही, पुत्र से जो मंगवाया, भेजते रहे. अपार वैभव. पर आने का नामो निशान नहीं. बारह वर्ष कोशा के यहां रहे. इस काम ने कैसा अपना साम्राज्य कायम किया? ऐसे कुलीन घर में ऐसे महान श्रावक उनके यहां इसने कैसी चोरी की? कैसे लूट चलाई ? बारह वर्ष तक. मां-पिता सब का वियोग, अकेले रहे. कभी आए नहीं. प्रसंग में उनके आने का एक भी उल्लेख नहीं. 480 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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