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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी आचार से पतित, सदाचार से भ्रष्ट आत्मा, उसको वेद भी पवित्र नहीं कर सकता आप विचार करें कि अन्य दर्शनों के ऋषि मुनियों ने भी अपना अभिप्राय कैसा दिया है. सडे हुये कान वाला कुत्ता यदि दुकान पर आ जाये, कुत्ते के कान में कीड़े कुद बुदा रहे हों, भयंकर दुर्गन्ध आ रही हो, कोई उसको स्थान या आश्रय नहीं देगा. दुराचारी आत्मा के लिए जगत में इसी तरह का व्यवहार होगा, कहीं भी सम्मान का पात्र नहीं रहता. ज्ञानियों की दृष्टि में ही वह दया का पात्र बनता है. उन आत्माओं को देखकर ज्ञानी दया के आंसू निकालते हैं. करुणा उनके नेत्र से आती है कि इसकी क्या दशा होगी? एक जरा से जीवन सुख के लिए व्यक्ति अपने जीवन को अंधकार मय बनाता है. इस प्रबल शत्रु पर विजय प्राप्त करना है. आहार परिमित हो. तप का माध्यम इसीलिये दिया जाता है. तप के द्वारा विचारों का निरोध किया जाता है. विकारों का दहन किया जाता है. तप के माध्यम से सदाचार का रक्षण किया जाता है. शरीर और इन्द्रियों के बीच संतुलन कायम करने वाला तप है, जरूरत से अधिक जो भी शक्ति है, उसका सन्तुलन वह बनाकर चलता है. यह अति महत्वपूर्ण है. इन सारी साधना के अन्दर लक्ष्य वही है. सतत क्रिया में मग्न रहे, सतत स्वाध्याय में रहे, सतत अपने कार्य में व्यस्त रहे. परिणाम उसका बड़ा सुन्दर आयेगा. वह व्यक्ति धीरे-धीरे दुराचार पर विजय प्राप्त कर लेगा. काम को नष्ट कर लेगा. काम को काम से ही जीतने का प्रयास करें. सतत कार्य में मग्न रहें. जरा भी यदि दिमाग को खाली रखा और एकान्त मिल गया तो दिमाग गलत चीज को उत्पन्न करेगा. खाली दिमाग शैतान का कारखाना बनता है. निष्क्रिय व्यक्ति दुराचार का प्रोडक्शन करेगा. प्रथम शत्र का परिचय देने के बाद उसके परम मित्र क्रोध का परिचय दिया. छ: शत्र है. आत्मा के परन्तु ये छ: ऐसे मित्र हैं जो एक दूसरे के वियोग में नही रह सकते. काम के साथ क्रोध उसके रक्षण में आयेगा. कषाय आयेगा व्यक्ति करने लग जायेगा. अप्राप्ति में उसकी वेदना इतनी खतरनाक कि सोचेगा, सामने वाले व्यक्ति को खत्म कर दूं. मेरे बीच में जो भी रुकावट आए, उसका नाश कर डालूं. __ पेपरों में पढ़ा होगा, दुराचार का परिणाम कैसा आता है. क्रोध तुरन्त उसकी सहायता आता है. दोनों साथ ही रहते हैं. काम और क्रोध एक ही सिक्के के दो पहल हैं. दोनों तरफ चित्र होते हैं. उसी तरह से ये दुराचार का एक ही सिक्का है काम और क्रोध उसके दो रूप हैं एक दूसरे के पूरक, एक दुसरे के सहायक हैं, उस पर विजय कैसे प्राप्त करना उसका रास्ता ज्ञानी पुरूषों ने धर्म बिन्दु सूत्र द्वारा बतलाया.. पर्व काल में ऐसे ही कितने प्रसंग हो गये. जिन आत्माओं ने इस प्रकार विजय प्राप्त की, वे धन्यवाद के पात्र बने. जैन परम्परा है, किसी भी व्यक्ति को मंगलाचरण देते हुए | ad 479 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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