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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: छत्रपति शिवाजी शौर्य मूर्ति थे. चरित्रवान व्यक्ति थे. क्योंकि उनके ऊपर आशीर्वाद रामदास का था. सन्तपुरुष का था. सन्त का आशीर्वाद सदाचार को जन्म देता है, सन्तों की परिधि में रहने वाला व्यक्ति, दुराचार के पाप से रक्षा पा जाता है इसलिए साधु सन्तों का समागम अनिवार्य माना गया है. नवयुवती आकर के निवेदन करने लगी कि मेरी भावना है, मैं आपके साथ निर्वाह चाहती हूं. आपके अपूर्व शौर्य से और आपकी शक्ति को देखकर के मेरे मन में यह भावना आती है, इसीलिए मैं अनुमति लेकर आपके पास आई हूं, छत्रपति शिवाजी ने जैसे ही बात सुनी, अपनी गर्दन नीची की. हाथ जोड़कर निवेदन किया - मुझे भी बड़ी खुशी होती, बड़ी प्रसन्नता होती यदि तुम्हारे जैसी खूबसूरत मेरी मां होती. शब्दों का ऐसा प्रभाव कि लड़की चरणों में गिर गई. मेरी बी गुनाह को आप क्षमा करें. अब कभी इस तरह का गलत विचार या निवेदन आपसे नहीं करूंगी. इतना बड़ा सम्राट् जिसके हाथ में इतनी बड़ी शक्ति, तलवार की ताकत जिसके पास, इतना बड़ा साम्राज्य जिसके पास, परन्तु शिवाजी पर सन्तपुरुष के आशीर्वाद के कारण जीवन में दया, सदाचार और पवित्रता थी. यह दृष्टि अगर हमारे अन्दर आ जाये, सारी सृष्टि बदल जाये. सदाचार ही धर्म का बीज है. उस ब्रह्मचर्य को ज्ञानी पुरुषों ने किस प्रकार नमस्कार किया "देव दानव गंधर्वा, यक्ष राक्षस किन्नराः" देवाऽपि तं नमस्यन्ति, दुष्करं करन्ति ये" भगवान महावीर के शब्दों में कहा गया. देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, किन्नर, पुरुष वे सभी उस आत्मा को भाव पूर्व वन्दन करते हैं. ये गुण हमारे अन्दर जिस दिन विकसित हो जाये, सदाचार का वृक्ष अगर निर्माण हो जाय तो मोक्ष का फल पाना बड़ा सरल बन जाये, सम्यक् प्रकार के चरित्र का पालन करना बडा सहज बन जाये, सम्यक दर्शन निर्मल हो जाये. ज्ञान के अन्दर से सारे विकार चले जायें. हितकारी ज्ञान आत्मा के लिए संसार से विरक्त करते समय परम साधन बन जाये. हमारी यही मंगल भावना होनी चाहिये. इसीलिए बहुत सारे नियन्त्रण दिये गये. आहार पर नियन्त्रण दिया गया. इस व्रत के रक्षण के लिए. आहार ऐसा नहीं होना चाहिये जो उतेजना देने वाला हो, आहार के अन्दर इस प्रकार का पोषण नहीं होना चाहिये, जिससे विषयों को पोषण मिले. शरीर में अधिक शक्ति संपादन भोजन के द्वारा दवाओं के द्वारा किया तो वह शक्ति सर्वनाश करेगी, विषय-विकार को उतेजित करेगी, सदाचार से दूर लेकर के आयेगी. वेदान्त में वेदों में एक ही वाक्य में इसका परिचय दिया. "आचारहीनान् न पुनन्ति वेदाः" 478 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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