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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी जहां तक यह भावना विकसित नहीं होगी वहां तक कोई धर्म साधना मेरे लिये आशीर्वाद रूप नही बनेगी. सर्व प्रथम विचार की उदारता चाहिए. आप पाकेट से उदारता बतलाएं या न बतलाएं, काधीन है. परन्तु विचार से तो उदार बनना ही पडेगा. उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्। ये सारे जगत के जितने भी व्यक्ति हैं. जीव मात्र मेरे परिवार के सदस्य हैं. यह उदारता सर्वप्रथम आप के अन्दर आनी चाहिए. हमारी सारी धर्म क्रिया यहां से प्रारम्भ होती है. प्रतिक्रमण या सामायिक करने के पूर्व हम क्या बोलते हैं? एकेन्द्रिय जीव से लगा कर पंचेन्द्रिय जीव का किसी से सम्बन्ध बाकी नही रहता. जो अव्यक्त दशा में है, जिनकी इन्द्रियों का विकास नहीं हुआ. किसी भी प्रकार से उन्होंने अपनी आत्मा का विकास प्राप्त नहीं किया उन आत्माओं से सम्बन्ध बनाकर के आगे बढ़ते हैं. कदाचित मेरे प्रमाद से, मेरी भूल से उनकी विराधना हई हो. मेरे द्वारा उन आत्माओं को कष्ट पहुंचा हो, मैं उसके लिए भी क्षमा याचना करता हूं. आत्म शुद्धि करके परमात्मा की भक्ति से अपने हृदय को पवित्र करके धर्म क्रिया में प्रवेश करता हूं. वहां तक तो प्रवेश ही निषेध है. सभी जीव मात्र को लेकर के चलना है. यह उदारता सर्व प्रथम अपने अन्दर आनी चाहिए. जितने आप संकीर्ण बनेंगे उतने ही आप परमात्मा से दूर हो जाएंगे परमात्मा के नजदीक पहुंचने का यही तरीका है विचारों से दूर नही विचारों के एक दम नजदीक पहुच जाना है. गर्मी का दिन हो और आप पंखे की हवा से दूर बैठे हों. घर में एयर-कुलर हो, और हैं. क्या ठण्डक मिलेगी? भयकर सर्दी पडती हो, सर्दी में हीटर लगा हो, हीटर से दूर जाकर बैठिए, गर्मी अनुभव होगी? सर्दी जाएगी नही. आप जितने हीटर के नजदीक आएंगे, उतनी चुस्ती आएगी. गर्मी अनुभव होगी. आप जितना एयर कलर के नजदीक आएंगे, उतनी ठण्डक मिलेगी. जितना परमात्मा के नजदीक पहुंचेंगे, उतनी ही चित्त को शान्ति और समाधि मिलेगी. आप जितने अपने विचारों से अपनी आत्मा के नजदीक पहुंचेंगे, उतनी ही शान्ति का अनुभव करेंगे. हम तो बहुत दूर चले गए. सदाचार के माध्यम से उन विचारों को स्वच्छ करके आत्मा को स्वच्छ कर चले गए. पर्युषण पर्व का यही संदेश है. हमारे जीवन का यह परम कल्याणकारी मित्र है. यह प्रकाश देने वाला धर्म है. इस पर्व का प्राण है जीवन का सदाचार. सदाचार की प्रवृति में सारी बात आ गई. क्षमापना की प्रवृति भी आ गई. क्रोध और कषाय से आत्मा को मुक्त करने का साधन भी बतला दिया. सदाचार शब्द के अन्तर्गत जीवन का संपूर्ण परिचय दे दिया. इस कल्याण मित्र के आगमन पर हमारे अन्तर्हदय में तैयारी होनी चाहिए. उसकी उपस्थिति में भाव पूर्वक उसका त्याग करने वाला बनूं URURI 476 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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