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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir =गुरुवाणी = काम पर विजय अनंत उपकारी, परम कृपालु आचार्य भगवन्त श्री हरिभद्र सूरि जी ने, सारे जगत के प्राणि मात्र के हित के लिए अनेक आत्माओं के कल्याण की भावना से इस धर्म बिन्दु ग्रंथ की रचना की. किस तरह से व्यक्ति जीवन के अन्दर विचारों का प्रकाश डाले. प्रकाश के अन्दर अपनी जीवन यात्रा का पूर्णविराम उसे उपलब्ध हो, परमात्मा तत्त्व की संपूर्ण जानकारी, परमात्मा के विचारों के द्वारा व्यक्ति प्राप्त करे. मेरा जीवन शक्तिमय बने, मेरे एक एक शब्द संगीत बनें. मेरे जीवन की क्रिया एक नृत्य बन जाए. मेरा जीवन एक धर्म महोत्सव जैसा बन जाए, परिणाम में मेरी मृत्यु भी महोत्सव जैसी ही बने. इसी मंगल भावना से उस महान आचार्य ने अपने अन्तर जीवन की गहराई में से, चिन्तन की गहराई से ये विचार जगत को दिए. सारे जगत के प्राणी मात्र के कल्याण की भावना थी. यहां आप देखेंगे इन सूत्रों में आज तक ऐसी कोई बात उन्होंने नहीं बतलाई जो किसी एक व्यक्ति के लिए, एक संप्रदाय के लिए, एक जाति के लिए हो. भगवान महावीर का संपूर्ण धर्म-शासन सबको लेकर के चलने वाला है. सबको लेकर ही चलता है. किसी भी धर्म या संप्रदाय के अन्दर यह चीज नहीं मिलेगी. हर क्रिया के अन्दर आत्माओं के कल्याण की भावना रखी गई है. __पूजा में, धर्मानुष्ठान के अन्दर, संध्या में, प्रतिक्रमण में, समाजिक कार्य में प्रार्थना की जाती है, तब आत्माओं के कल्याण के लिए जाती है. वहां कही आपके विचारों की दरिद्रता नहीं मिलेगी कि मेरा ही कल्याण हो, मेरे परिवार का ही कल्याण हो. मेरी जाति का कल्याण हो, और प्रभु मुझे मानने वाली आत्माओं का ही कल्याण हो. ऐसी किसी भी बात का एक भी उदाहरण नहीं मिलेगा. "शिवमस्तु सर्वजगतः" यह मंगल सूत्र है, परमात्मा के हर कार्य में, हर विचार में, इसका दर्शन मिलेगा. प्राणी मात्र का कल्याण हो, जीवन मात्र का कल्याण हो. "सभी जीव करूं शासनरसी" परमात्मा की मंगल भावना होती है. हर आत्मा को सुखी बनाऊ, जगत की हर दुखी आत्मा हर सुख को प्राप्त करने वाली बने. मोह की अधिकारी बनी जगत की हर आत्मा परमात्मा बने. परमात्मा के दर्शन के लिए. इसी भावना से हम जाते हैं कि प्रभु तेरा दर्शन करके मैं भी वैसा बनूं. मेरे अन्दर भी प्रभूता के गुण विकसित हो जाएं. मैं अपूर्णता से पूर्णता प्राप्त करने वाला बनूं. मेरे सारे जीवन की साधना भावना तेरी कृपा से सफलता प्रदान करने वाली बने. हि 475 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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