________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी “हां यह सत्य है, सौ वर्ष तुम्हारा आयुष्य है." दूसरे दिन महाराज ने सेवकों को आदेश दिया. आज एक भी चीज नहीं लाना. एक भी फल नहीं, एक भी मिठाई नहीं, कुछ नहीं, सब स्वागत बन्द. रात्रि में प्रेतात्मा आई. उसने जब देखा वहां कोई स्वागत नहीं, धूप नहीं, दीप नहीं, कोई फल नहीं, कुछ नहीं, वैताल योनि में था. बड़े आवेश में तलवार लेकर के महाराज विक्रम के सामने आया. “तूने आज क्या किया. मेरा अपमान किया. उसका बदला मैं लूंगा." "तू क्या तेरा बाप भी नहीं ले सकता. कल तो मैंने तुझ से पूछा. सौ वर्ष से घटा नहीं सकता, बढ़ा नहीं सकता, बेकार मैं तेरे लिये फल फूल लाऊं, एक चीज तुझे नहीं मिलेगी. तू जो चाहे कर लेना.” बचन से बद्ध था. नतमस्तक होना पड़ा. हमेशा अपने आप को उसके वश में कर दिया. महान पुरुषों की यह ताकत. वैराग्य का यह निमित्त मिला, शत्रु प्रवेश के बाद परिवार में कैसा भयंकर क्लेश पैदा हआ. महाराजा विक्रम का यह प्रसंग बड़ा रोचक है, कल समझाऊंगा. इससे आगे तो बड़ी अपूर्व घटना है. "सर्वमंगलमांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्वधर्माणां जैन जयति शासनम्" प्रकृति के इस अटल नियम को सदा याद रखो कि किसी को रूलाकर आप हँस नहीं सकते. औरों को दुःखी बनाकर सुखी बनने की कल्पना मात्र भ्रम है. दूसरों को मारकर इस जगत में कोई शान्ति से जी नहीं सका है. nain 474 For Private And Personal Use Only