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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir =गुरुवाणी राज्यभिषेक किया जायेगा. गांव के लोंगों ने कहा और कोई नहीं मिला? यह बाबा मिला. यह क्या राज्य चलायेगा? इसकी क्या ताकत, जीवन में कभी डण्डा नहीं चलाया. यह तलवार क्या चलायेगा. लाकरके राज्य गद्दी पर बैठा दिया. मन में जानते थे कि रात को इसकी बलि होने वाली है कि सुबह इसकी लाश मिलेगी. __ महाराज विक्रम को सब कुछ मालूम था. किसी को अपना परिचय नहीं दिया. महापुरुषों की यह विशेषता है कि अपने मुंह से, शब्दों से, अपना परिचय नहीं देते. अपने कार्य से, अपनी महानता से, अपना परिचय देते हैं. लोगों को जानकारी नहीं थी कि यह महाराज विक्रम हैं. भर्तृहरि के छोर्ट भाई, राज्य के सही अधिकारी यही हैं. उन्होंने रात्रि के समय बहुत सारी चीजें मंगवाई, मिठाई, फल मंगवाये. और अपने राजमहल में जहां सोते थे वहा रखी थी. किस तरह सारी दुर्घटना हो गयी. मैं सावधान ह. मध्यरात्रि में वह पिशाच आया. आते ही वहां देर | म वह पिशाच आया. आत हा वहा देख सुगन्धमय, मध्यरात्रि में वातावरण देख खुश हो गया. नैवेद्य और फल रखा था. देखकर के आत्म सन्तोष मिला. यह एक ऐसा व्यक्ति है जिसने मेरा स्वागत किया. मझे नैवेद्य और फल अर्पण किया. बडा सन्तोष हआ. उसने कहा-तुमने मेरा स्वागत किया. मैं तुम्हारा कोई नुकसान करने वाला नहीं. कुछ दिन उसने बड़ी सुन्दर उपासना की. मध्य रात्रि में जब भी उसका आगमन होता, बड़े सुन्दर तरीके से उसका स्वागत करता. लोगों ने कहा-बाबा बड़ा चमत्कारिक है, वह तो जिन्दा निकला. आज तक जितने आये उनकी लाश ही निकली. इसलिए राज्य का संचालन तो कर लेगा. एक दिन अचानक महाराज विक्रम ने अपने सेवकों को आदेश दिया-आज एक भी चीज़ यहां नहीं रखना. जब तक मैं कहं न तब तक मध्यरात्रि का समय, बडा प्रसन्न कर दिया प्रेतात्मा को, फिर उससे प्रश्न किया "तुम्हारे पास में कुछ जानकारी है?" "तुम प्रश्न करो, मैं तुम्हें जबाब दूंगा." “मेरा आयुष्य कितना है?" | प्रेतात्मा ने कहा - "सौ वर्ष." महाराजा विक्रम ने कहा-एक के आगे दो बिन्दु लगता है. यह जरा अच्छा नहीं, या तो एक बिन्दु घटा दो या बढा दो. प्रेतात्मा ने कहा - “यह क्या मेरे हाथ की चीज़ है, एक मिनट भी मैं घटा बढ़ा नहीं सकता. मेरे अधिकार में यह चीज नहीं. मैं तुम्हारे एक बिन्दु को कैसे घटाऊ-बढ़ाऊं. तो क्या यह निश्चित है?" क 473 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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