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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी था. पिंगला ने रात्रि के समय अपने प्रेमी को दिया. प्रेमी ने सोचा मैं खाकर क्या करूं. वह वेश्या के यहां जाया करता था. वेश्या को जाकर दे दिया. वेश्या ने विचार किया, यह फल खाकर मैं क्या करूं? और ज्यादा पाप का पोषण होगा, मैं तो पाप से छूटना चाहती हूं, मेरी मजबूरी है. वेश्या ने सोचा राजा को दे दं. वेश्या जब राजा के पास राज दरबार में आई और आकर के जब फल अर्पण किया. और कहा राजन्, फल का यह सुन्दर परिणाम है. राजा विचार में डूब गया कि यह राउण्ड देकर वापिस मेरे पास कैसे आया, सारी हकीकत मालूम पड़ी. एक वाक्य राजा ने कहा, ऐसा विरक्त भाव आ गया. ऐसा निमित्त से अपर्व वैराग्य आ गया, राज्य का परित्याग कर दिया. उन्होंने कहा ___ "सर्वं वस्तु भयावह हि जगता, वैराग्यमेवाभयम्" यह वैराग्य ऐसी वस्तु है, जहां भय का प्रवेश नहीं, मैं निर्भय रहूं और इस वैराग्य से इन सारे प्रपंचों से अपनी आत्मा का रक्षण करूंभर्तृहरि ने संन्यास ले लिया. महाराज विक्रम इसी पिंगला के कारण से, असन्तोष लेकर के वहां से विदा हो गये थे. छद्म वेश में, अन्यत्र चले गये थे. यहां ऐसी परिस्थिति आ गई भर्तृहरि ने वैराग्य ले लिया. कोई मुहूर्त नहीं देखा और कोई राज्य गददी का उत्तराधिकारी था ही नहीं. महाराजा विक्रम की खोज की जाने लगी. पिंगला के कारण, पारिवारिक क्लेश के कारण वे राज्य से पहले ही चले गये थे. कहां थे? किस रूप में थे? किसी को मालूम नहीं, वे अवधूत के रूप में देश-देश फिरते थे. अचानक लोगों ने देखा, राज्य की गद्दी खाली नहीं चाहिये. शून्य गद्दी थी. और अगर किसी प्रेतात्मा का निवास हो गया, लाकरके उस गददी पर बैठाया और वो प्रेतात्मा आई और उस व्यक्ति को खत्म कर गई. जिसको लाकर के उज्जैन में उस गद्दी पर बैठाये. रात्रि में उसका अन्त हो जाये. सुबह उसकी लाश निकले. वो प्रेतात्मा का निवास शून्यकाल में हो गया. कोई पुण्यशाली आत्मा आई नहीं. कहीं से लाकर किसी दरिद्रनारायण की बैठाया. पूण्य का अभाव होने से मारा गया. संयोग, वहां महाराजा विक्रम अवधुत संन्यासी के वेश में नदी के किनारे आये, महादेवी के मन्दिर के पास. गांव वालों ने निश्चित किया कि हाथी को एक कुम्भ कलश देकर भेजना शहर में. यह हाथी जिस पर कुम्भ का कलश डाले, उसे ही महाराजा बना देना. ऐसी भी प्रथा थी पहले. वहां से सवारी निकली. महाराजा विक्रम वहीं नदी के किनारे सोये थे. महाकाल के मन्दिर के पास. हाथी ने नदी से जल लाकर कुम्भ कलश डाला, डालते ही राज सेवकों ने आमन्त्रित किया. आप इस राज्य के अधिकारी राजा हैं. हाथी पर बैठिये, आपकी सवारी निकलेगी. आपका lau 472 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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