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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: जहां जिस आर्य भूमि में ऐसे संस्कार थे: जिस आर्य भूमि में ऐसी मातायें थी. ऐसी मर्यादायें थी, आज तो मर्यादायें रही कहां. यह बहुत विचारणीय है. शहरों में जहां प्रतिक्षण अशुभ निमित्त मिलते हैं. जहां प्रतिक्षण पतन का निमित्त अपने को मिलता हैं, वहां विशेष सावधानी रखे, कि जितनी मर्यादाओं का रक्षण हो सके वहां आप बचाने का प्रयास करें. आचार्य भगवन्त ने यही निर्देश दिया है. इतिहास में एक घटना, जो प्रतिवर्ष दिवाली के चौपड़े में लिखा जाता है. महाराजा विक्रम प्रजा के हृदय में साम्राज्य करने वाले. संवत् प्रवर्तन जिन्होंने किया. संवत् प्रवर्तन करने वाले राजा ऐसे. संवत् कब प्रवर्तन किया जाता है जब पूरे देश में एक ही व्यक्ति कर्जदार नहीं होना चाहिये. इसका नियम है, जितने भी व्यक्ति राज्य में कर्जदार हैं. उन सभी के कर्ज को राज्य अपने कोष में से देकर उन्हें कर्ज मुक्त कर दे. सारी प्रजा कर्ज मुक्त बन जाये, जिसके राज्य में, उस व्यक्ति से संवत चला. संवत प्रवर्तन होता है महाराजा विक्रम के समय इस प्रकार का कार्य उन्होंने किया. एक भी व्यक्ति कर्जदार नहीं. भारत में जन्म लेते ही व्यक्ति अस्सी हजार का कर्जदार बन जाता है. जन्म से ही कर्जदार रहता है. इतना विदेशी कर्ज इस देश ने लिया है, व्यक्ति के ऊपर अस्सी हजार रुपये का कर्ज आता है आप कल्पना भी नहीं करेंगे ____ महाराजा विक्रम, उन्हीं के बड़े भाई भर्तृहरि, जो वैराग्य शतक के रचयिता हैं, जिन्होंने सन्यास लिया. अपूर्व वैराग्य था. परन्तु पिंगला उनकी धर्म पत्नी थी. संयोग कोई पूर्व कर्म का ऐसा दोष, काम ने वहां प्रवेश किया. परे परिवार के अन्दर ऐसा एक निमित्त आ गया. भर्तहरि बडे विद्वान थे. उन्होंने ऐसा राजमार्ग लिया. विक्रम होकर के वैराग्य पाकर के संन्यास ले लिया. उसका एक कारण बना. बहुत वर्षों की साधना के बाद किसी संन्यासी से ऐसा एक सुन्दर फल मिला. देवी ने लाकर के हाथ में दिया और कहा-इस फल को तुम लो और इस फल को खाओ. इसे खाने का परिणाम सदा जवानी तुम्हारे अन्दर रहेगी. बुढ़ापा तुम्हारे अन्दर कभी प्रवेश नहीं करेगा. कोई असाध्य बीमारी तुम्हारे अन्दर नहीं आयेगी. संन्यासी ने देखा मैं तो साधु हूं. मैं जवानी लेकर क्या करूं? मतलब यह शरीर का धर्म है? शरीर करे. मेरा तो आत्मा धर्म जो परमात्मा ने देखा वही होगा. परन्तु यह प्रजा का पालक राजा, बड़ा सुन्दर आचार विचार वाला है. ऐसी योग्य आत्मा को अगर मैं फल अर्पण करूं तो प्रजा का रक्षण करेगा. धर्म और संस्कृति का रक्षण करने वाला बनेगा. मैं जाकर यह फल राजा को अर्पण करूं. प्रजा पालन करने वाला राजा है. बड़ा योग्य राजा हैं, फल लेकर के आया. राज दरबार में लाकर के राजा को दिया. राजा ने सोचा कि यह फल खाकर मैं क्या करूं? अपनी धर्मपत्नी पिंगला को दे दें. अगर वह सुन्दर रहे और निरोग रहे तो मुझे बड़ा सन्तोष मिलेगा. महारानी पिंगला को दिया. पिंगला का प्रेमी एक आया करता Rela 471 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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