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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी - - जहां रोज ऐसे अशुभ निमित्त मिलते हों. बाहर जाइये ऐसे निमित मिलेंगे. घर में ऐसे निमित्त मिलेंगे. परिवार में रहना पड़ेगा. संसार में रहना पड़ेगा. आपने अपने बचाव का कोई उपाय किया. कैसे अशुभ भयंकर निमित्त मिलते हैं. उसमें अपना रक्षण करना. स्टीम इंजिन के अन्दर आपने देखा होगा. अगर वायलर में लीकेज हो जाये तो गाड़ी नहीं चलेगी. गाड़ी वहीं से चलती है, पूरे इंजन में शक्ति देने वाला उसका वायलर है. जो स्थान इंजन में वायलर का है, वही स्थान हमारे जीवन में ब्रह्मचर्य का है. वही पावन है जो मोक्ष मार्ग में आपकी चेतना को गति देता है. यदि वहां लीकेज रहा जरा भी आपका विकास नहीं होगा. जहां संसार में पले हैं वहीं पर रहिये. एकदम स्पष्ट निर्देश है भोग के अन्दर योग का प्रवेश होना चाहिये. अगर योग दृष्टि आ जाये. आत्मा का लक्ष्य आ जाये तो व्यक्ति भयंकर पाप से अपनी आत्मा का बचाव कर लेगा. सदाचारी आत्मा अपने जीवन में सन्तोष मान कर के चले. पूर्ण रूप से इस व्रत को पूर्ण करने की मनोकामना लेकर के चले. जिस समय सीता का हरण हो गया. राम को विह्वल देख करके हनुमान के मन को बड़ा कष्ट हुआ. हनुमान तो ब्रह्मचारी पुरुष थे. उन्होंने निर्णय किया कि राम मेरे रहते आप चिन्ता करो नहीं. मैं जहां तक जीवित हूं. वहां तक आपकी आत्मा को कष्ट पैदा हो जाये, यह मेरे लिये बड़ी लज्जा की बात हैं. आप निश्चित रहो. मां को लेकर में अभी आता हूं. सीता को लेकर के आता हूं. अपनी योग शक्ति के द्वारा समुद्र पार करके लंका में गये. हनुमान की नम्रता देखिये. सीता एकदम देख करके विचार में पड़ गई, कहो हनुमान! तुम यहां कैसे आये? इतना विशाल समुद्र कैसे पार करके आये? राम की कपा से शब्द में कैसी नम्रता, यह नहीं कि अपनी शक्ति से. "यहां कैसे आये?" "मां तुम्हें लेने के लिए आया हूं. राम का जो कष्ट है, वह चला जाये. किसी तरह से मेरा सहयोग इसे दूर करने वाला बने. आप मेरी पीठ पर बैठ जाइये. मैं एक क्षण में आपको पहुंचाऊंगा.” सीता ने जवाब दिया - “हनुमान, तुम्हारा कहना ठीक है. तुम्हारी शक्ति के लिए धन्यवाद् परन्तु तुम मुझे जानते हो. किसी भी पर पुरुष का जरा भी स्पर्श मैं कभी करती नहीं. इस प्रकार मेरा जाना संभव नहीं. राम का ही हाथ पकडूंगी. दूसरे किसी पर पुरुष का स्पर्श भी मैं नहीं करूगी." उसके सतीत्व को लाखों वर्षों से दुनियां याद करती है. मुफ्त में याद नहीं करती. राम को याद करती है. राम से पहले सीता को लेकर राम का महत्व है. कैसी पवित्रता उनके आचार में होगी. ये जैन रामायण की घटना है. कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्र सरि ने लिखा है. 470 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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