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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी के घर न जाये. बिना पात्र का साधु कुपात्र होता है. शोभा नहीं देता है, अगर कोई उपाय न मिले झूठ का सही रास्ता ले. तब क्या करना, तरपनी में से डोरी निकालकर परमात्मा का नाम लेकर आत्मघात कर लेना. संयम का रक्षण अवश्य करना. प्राण का मूल्य चुका करके संयम का रक्षण करना. यह हमारे आचार्य का निर्देश है, प्राण दे देना. बह्मचर्य से भ्रष्ट कभी भी नहीं होना. “श्रेयस्ते मरणम भवेत्" दशवैकालिक सूत्र में प्रायश्चित हैं. आप विचार करते इसका कितना महत्व होगा. साधु से हिंसा हो जाये, उसके लिए उपचार है. प्रायश्चित्त है कदाचित् प्रमाद से झूठ बोल गया. उसके लिए उपचार है, प्रायश्चित से शुद्धि हो जाये, कदाचित साधु ने बिना बोले कोई चीज उठा ली, चोरी हो गई तो भी उसके लिए प्रायश्चित है. सभी चीजों के लिए प्रायश्चित रखा. कदाचित् ऐसा हो तो ऐसा कर लो। __ लेकिन ब्रह्मचर्य के लिए कोई उपाय नहीं, सिवाय मौत के इसकी कोई दवा उपचार नहीं. आप समझ लेना. कि व्रत कितना मूल्यवान है. सारे व्रतों में इसे सम्राट् माना गया. इसे राजा की उपमा दी गई सब इसकी प्रजा हैं. डाक्टर के पास आप इलाज के लिए जायें, शरीर में कोई व्याधि हो. डाक्टर चिन्ता नहीं करता जरा दवा लें. बाहर से उसको कोई खतरा नजर नहीं आता है. डाक्टर निश्चित रहता है. उपचार से ये चीजें मिट जायेंगी. बाहर से कोई खतरा नजर नहीं आये, शरीर में कोई दर्द नजर न आये, डाक्टर के पास गये, एक्सरे लिया, डाक्टर का चेहरा उतर जायेगा, यह बड़ा खतरनाक रोग है. बाहर से कोई चीज नजर नहीं आती. उसका एक्सरे बोल रहा है कि हार्ट डेमेज है. शरीर के अन्दर जो स्थान हृदय का है हमारे जीवन में वही स्थान ब्रह्मचर्य का है अगर दसरे दषण हैं, वे सब सामान्य रोग हैं. कदाचित गुस्सा आ जाये. लोभ आ जाये, वस्तुओं के संग्रह करने की भावना आ जाये. और कोई उत्तम गुणों में दोष आ जाये. वे सब गौण हैं, सामान्य रोग हैं. सब चले जायेंगे, आगम-स्वारध्याय से, संत संगत से.. यह ऐसा दोष है, जैसे हार्ट अटैक आने के बाद डाक्टर कह दे कि अब कोई संभावना नहीं. इसीलिए प्रथम शत्रु सूत्रकार ने काम को बतलाया. आत्मा के छ: शत्रुओं का परिचय चल रहा है. यह दिखता नहीं. इसकी कोई वेश भूषा नहीं होती. क्रोध तो दिख जाता है. वह प्रकट शत्रु है. आपके चेहरे से हाव - भाव से. वह शत्रु तो प्रकट है. मालूम पड़ जायेगा. दूसरा व्यक्ति सावधान हो जायेगा. ___मन में छिपे काम की दूषित प्रकृति को नहीं पकड़ सकता कि मन में क्या पाप छिपा है, यह छिपा हुआ शत्रु है. छिपा हुआ शत्रु खतरनाक होता है. मेरे अन्दर अगर क्रोध आ गया तो आप मेरे से दूर रहेंगे, परन्तु वह तो ऐसा भयंकर शत्रु है. कपड़ा बदल कर आता 468 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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