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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: भिक्षा के लिए साधु जाते हैं. कापट मात्र होता है, डोरी लगी रहती है. उस डोरी लगाने का आशय समझ गये? साधु बिना पात्र के बाहर जाते ही नहीं. गृहस्थ के यहां जाये तो निर्देश है उपकरणों के साथ, पात्र के साथ. बिना पात्र के गृहस्थ के घर न जाएं. कब न जाने क्या काम आ जाये. उपकरण भी बहुत समझ कर रखे. ज्यादा ले जाये तो डण्डा, पात्र, रजोहरण साथ चाहिये. लोग कई बार पूछते हैं. महाराज डण्डा का क्या काम है? भगवान की आज्ञा है, संयम साधना का एक परम साधन है, कई कारणों से इस को रखा गया. साधनों का उपयोग यदि आप गलत करते हैं. यह आपके विवेक पर निर्भर है. पैसा आपके पास है, आप शराब पीजिये या दूध पीजिये. हाथ लूटता नही है, हाथ बचाता भी है. चाकू तो डाक्टर भी चलाता है. चाकू डाकू भी चलाता है. डण्डा इसीलिए रखा जाता है, साधु विहार करते हैं. पद यात्रा करते हैं. अचानक कहीं पानी आ गया. नदी आ गई, नदी पार करने के लिए. आत्म विराधना देखते न हो जाये. दुर्घटना का कारण न बन जाये. पहले डण्डा रखकर उससे पानी देखते फिर नदी पार करें. एक तो यह कार्य है. चढ़ाइयां आती हैं. पहाड़ आते हैं. कई जगह पर. कोई साधु बीमार है, वृद्ध है, चलना है, उनकी चढ़ाई में यह डण्डा आश्रय देता है.... ___संयम साधना का यह परम मित्र है, चढाई में मदद करेगा. उतरने में मदद करेगा. अचानक कोई बीमार पड़ गया तो चलने में सहारा देगा. बहुत तरह से संयम साधना में उपयोगी माना गया है. अचानक किसी साधु की रास्ते में दुर्घटना हुई, तो साथ के साथ चार पांच होते हैं, दो डण्डे लिए, हमारे पास कामली तैयार रहती है. उससे बांधा और डण्डा उठा लिया. __ विहार करते हैं, रास्ता भूल गये, भटक गये, जंगल में चले गये. कोई उपाय नहीं मिला तीन डण्डा मिलाया कामली ऊपर लगाई, तम्बू बन गया ठहर गये. बहुत उपयोगी है इसलिए रखना आवश्यक माना गया हैं प्रभु की आज्ञा है. मिलिटरी को निर्देश दिया जाता है, युद्ध हो न हो पर यूनिफार्म जरूरी है. प्रभु की आज्ञा है, हमारे पास सर्वोपरि वही है. उसका उपयोग करना पड़े, न करना पड़े, वह अलग चीज है. प्रभु की आज्ञा को शिरोधार्य करना. एक - एक चीज हमारे लिए उपयोगी रखी गई है. तरपनी रखी जाती है, जिसे लोटा कहते हैं. कोई भी तरल पदार्थ पानी दूध जो भी लेना हो उसी में लेते हैं. ताकि वह गिरे नहीं, छलके नहीं. इस दृष्टि से उसमें डोरी लगी होती है. उसे हाथ में लिया जाता है. भद्र बाह स्वामी ने आदेश दिया. अपने साधुओं को कि भविष्य में इस काल को देखते हुए, यह चीज अनिवार्य है. गृहस्थ के घर जाये तो पात्र लेकर के जाये, बिना पात्र गृहस्थ 467 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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