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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir -गुरुवाणी जाये, अन्य समय नहीं जाये क्योंकि घर में एकान्त मिलेगा, पुरुष नहीं मिलेंगे वह परिचय भविष्य में पतन उत्पन्न करेगा. आचार्यों ने विचार करके निर्देश मर्यादायें बतलाईं, भले ही वह दो बजे आहार करते हैं, परन्तु भिक्षा ग्यारह बजे लेकर आएं ताकि घर में एकान्त वातावरण नहीं मिले. साथ ही हमेशा सुरक्षित रहे. ऐसा समय ऐसी परिस्थिति में क्या करना? उपाय बतलाया. शिष्य ने प्रश्न किया. उन्होंने कहा - झूठ बोल कर भी ब्रह्मचर्य का रक्षण करो. असत्य जहर है परन्तु उस को दवा बनाता है. संखिया जैसा जहर भी बीमार को दिया जाता है. रसायन के रूप में दिया जाता है. दमा की व्याधि में पिलाया जाता है. जब जहर भी अमृत बन जाये. असत्य के द्वारा भी अपने ब्रह्मचर्य का रक्षण करे. झूठ बोले, साधु होकर के भी झूठ बोले. क्योंकि उससे भी महान तप का रक्षण करना है, असत्य का आश्रय किस प्रकार ले कि मैं अभी भिक्षा के लिए आया हूं. अभी तुरन्त धर्म स्थान जाता हूं. बाद में अनुकूल समय पर आ जाऊंगा आश्वासन दे. अपने चरित्र को बचाने के लिए स्थान छोड़ दे. गांव छोड दें. ताकि कभी ऐसा अशुभ निमित्त न मिले. दृष्टि में भी न आए और विचार में भी न आये. परन्तु आगे चलकर शिष्य ने फिर एक प्रश्न पूछा - “भगवन्! यदि झूठ बोलने से भी काम न चले तो. व्यक्ति विषय में अन्धा होता है. विषय का गुलाम होता है. ऐसी परिस्थिति आ जाये, और साधु के मन में यदि चंचलता, व्यग्रता आ जाये. काम की मनोवृति यदि प्रवेश कर जाये तो क्या किया जाये. इसे खोकर के चरित्र का, साधुत्व का, रक्षण करना, या इसे नष्ट होने के बाद प्रायश्चित्त के बाद आत्म शुद्धि करना. क्या उपाय है?" इतने महान आचार्य श्रुतकेवली, भद्रबाहु स्वामी जैनों के चारों ही संप्रदाय जिनको मानते हैं. जाति से ब्रह्मण थे. मन्त्र शास्त्र और ज्योतिष विषय के अपूर्व ज्ञाता थे. वराहमिहिर के सगे भाई थे. वराहमिहिर ज्योतिष के महान ज्ञाता वराह ज्योतिष के रचियता. वैष्णव परम्परा में महा पण्डित हुए. उन्होंने कई स्तोत्रों की रचना की. श्रुति का उद्धार करने वाले. ऐसे महान विभूति ने क्या निर्देश दिया? कल्पना करिये, साधु प्रश्न करता, “भगवन ऐसे समय में क्या किया जाये. साधता को बचा लेना एक बार यदि किसी पाप का सेवन हो जाये तो कदाचित् अतिपात द्वारा उसकी शुद्धि कर लेनी चाहिए.” भद्रबाहू स्वामी ने स्पष्ट निर्देश दे दियाः “श्रेयस्ते मरणम् भवेत्” शिष्य से कहा - ब्रह्मचर्य को नष्ट करने से मरना ही आशीर्वाद है, वही तुम्हारे चरित्र का रक्षण करने वाला है, वही मृत्यु से तुम्हें बचाएगा. कैसे उपाय हैं. वहां कोई मरने का साधन तो साथ-साथ लेकर जाता नहीं, जहर तो होता नहीं भगवन् किया क्या जाये. उपाय बतलाओ. 466 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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