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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी: E चारित्र का प्राण माना गया वह ब्रह्मचर्य चला गया तो सब चला गया. हेल्थ इस लोस्ट नथिंग इज लास्ट वेल्थ इज लोस्ट समथिंग इज लोस्ट बट करेक्टर इज लोस्ट एवरीथिंग इज लोस्ट. शरीर चला गया, कुछ नहीं गया. खा पीकर फिर से शक्ति प्राप्त कर लेंगे. कोई चिन्ता नहीं, वैल्थ इज लोस्ट कदाचित् पैसा चला गया. कर्म की चीज है फिर से प्रयास करेंगे, नुकसान जरूर हुआ. भरण पोषण की चिन्ता रहेगी. परन्तु फिर भी प्रयत्न करके प्राप्त कर लेंगे. यदि आप ने चरित्र गंदा कर दिया तो जीवन का सब कुछ गया. आप मुर्दा हैं. आपके अन्दर प्राण ही नहीं है. ___आयुष्य कर्म के परमाणुओं को भोगने के लिए ही आप जीवित हैं. इसके सिवाय वहां कुछ नहीं है. मरे शब्द होगें. उसमें कोई प्राण तत्व नहीं होगा. जीवन निष्क्रिय बन जायेगा बहुत जल्दी संसार से परलोक की यात्रा हो जायेगी. हमारे यहां उन महान पुरुषों ने जीवन के साथ इसके रक्षण के लिए मर्यादायें बतलाई सूर्यास्त के बाद हमारे यहां कोई नहीं आ सकता. चाहे सगी मां ही क्यों न हो. मर्यादा है, बड़े अगर गलती करेंगे तो छोटे तुरन्त उसका अनुकरण करेंगे. रात्रि में साथी को अपने धर्मस्थान के बाहर जाने का निषेध किया. क्योंकि संध्या का समय है. साधु धर्म क्रिया करे, उपासना करे. भटकने के लिए साधना नहीं है, मर्यादाएं ब्रह्मचर्य के रक्षण के लिए हैं. शाम के समय सभी घमने जाते हैं कैसी देशभाषा होती है मर्यादा का उल्लंघन कर रहे हैं. वर्तमान में बहुत सोच समझकर के सदाचारी आत्माओं के रक्षण के लिए व्यवस्था हो गई. कभी ऐसा प्रसंग आ जाये, भगवान महावीर की यह वाणी है, कहां तक निर्देश दिया गया. जहां ब्रह्मचर्य होगा, वहां पर चित की समाधि बिना बुलाये आ जायेगी. अति परिचय पतन का द्वार बनता है. गर्मी के पास आप घी रखेंगे निश्चित पिघलेगा. कोई बहाना नहीं चलता. मन है कोई ऐसा एक सा जागृत में नहीं जो मन को देख सके. किस मन में कब पाप प्रवेश कर जाये. भद्र बाहु स्वामी जैसे श्रुत केवली सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य के धर्म गुरु महान शक्तिशाली आचार्य पूर्व धर थे. ऐसे महान आचार्य ने आगामी साधुओं को स्पष्ट निर्देश दिया. शिष्य ने प्रश्न किया - "भगवन्, संसार बडा विचित्र है. कोई ऐसा संयोग आ जाये भोग के लिए यदि कोई कामना करे, प्रार्थना करे किसी गृहस्थ के यहां साथ भिक्षा के लिए गया हो. एकान्त स्थान हो, गलत निमित्त बन जाये. जवान साधु हो, ऐसे में कोई काम की प्रार्थना लेकर आ जाये. वहां से बचने का कोई उपाय न हो तो क्या किया जाये?" ____ इसलिए साधुओं को विशेष निर्देश दिया गया कि भिक्षा के समय आहार के समय उस समय जब गृहस्थ आहार लेते हों, पूरा परिवार घर में हो, उसी समय भिक्षा के लिए 465 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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