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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी मा सारा जगत ही उस तरफ जाता है. साध | लूटे जाते हैं, हमारे जीवन के चौकीदार तो हैं. गृहस्थ अपनी साधना का रक्षण करता है. साधु पुरुषों का रक्षण करने वाला गृहस्थ हमारे श्रावक हैं. चौकीदार स्वयं ही लूट करने लग जाये, चोरी करने लग जाए. तो मालिक की क्या दशा होगी. जहां संयम के रक्षण की व्यवस्था थी, आपके जीवन का साधुओं को चौकीदार बनाया, यदि आप ही साधु पुरुषों से गलत काम करायें या किसी प्रकार का प्रलोभन देकर के साधु पुरुषों को पथ भ्रष्ट करें. फिर साधु अपनी साधुता का कैसे लक्ष्य प्राप्त करे. किसी भी साधु के पास जगत की कोई कामना लेकर जाता ही नहीं. मर्यादा से विरुद्ध कोई कार्य करना ही नहीं. उस व्यक्ति ने जब पूछा-मुझे सैद्धान्तिक नहीं कुछ व्यावहारिक दिखाइये, प्रत्यक्ष में दिखलाइये कि सदाचार की क्या शक्ति है. वकील खड़े होकर के प्रश्न कर रहा था. विवेकानन्द ने मानसिक विचारों को केन्द्रित किया, मन के अन्दर बड़ी शक्ति है, मानसिक परमाणुओं में यदि एकाग्रता आ जाये, साधना के द्वारा यदि उसे परिष्कृत बना लिया जाये, निर्दोष कामना उसमें आ जाये. विवेकानन्द के विचार में आया, इस आत्मा को धर्म के प्रति श्रद्धा जागृत करनी है. मात्र उसकी आत्मा को सुरक्षित रखने के लिए, श्रद्धा को स्थिर करने के लिए, उन्होंने जीवन में कई बार ऐसे प्रयोग किये. विवेकानन्द खडे थे, प्रश्न कर्ता भी खड़े थे, मन में संकल्प किया, संकल्प का बल कैसा, मानसिक परमाणु में ताकत कितनी. उसकी एकाग्रता जो आप विचार करें तो कार्य हो जाये. यह मन का चमत्कार है, मन्त्र का नहीं, मन्त्र तो मन को केन्द्रित करने का आश्रय है. विवेकानन्द ने कहा तम बैठ जाओ वह नहीं बैठ सका. बहत कोशिश की बैठने नहीं पाया. उन्होंने कहा - आप बैठ जाइये, नहीं बैठ सका. उन्होंने कहा-आप कोशिश करते हैं फिर भी आप बैठ नहीं सकते, यह आध्यात्मिक शक्ति है. यह ब्रह्मचर्य का चमत्कार है. शब्द के परमाणु का आकर्षण है. मैंने मन में संकल्प किया कि आप बैठ नहीं सकते, खड़े ही रहोगे. यह मन के संकल्प की चीज है, कोई जादू नहीं. यह ब्रह्मचर्य की शक्ति है. मेरे शब्दों में वह ताकत है कि आप को चाहूं तो बैठा सकता हूं. चाहूं तो खड़ाकर सकता हूं. उस व्यक्ति ने कान पकड़कर क्षमा याचना की. एक सामान्य मानव में भी यदि इन शक्तियों का विकास हो जाये. इन शक्तियों को यदि सुरक्षित रखा जाये तो यह चीज तो बड़ी स्वाभाविक है, बड़ी सहज है. हालाकि इन चीजों से आत्मा का कोई सम्बन्ध नहीं, यह तो मात्र उनका प्रयास था. इस आत्मा के अन्दर धर्म की आस्था स्थिर बन जाये. कभी शका का जहर इसमें न आ जाये. चरित्र में यह ताकत है इसीलिए कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्र सूरि ने कहा . “प्राणभूतं रियस्स्य, प्रभुमणेक कारणम्" 464 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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