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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी परमात्मा का निर्देश है : "चित्तं जिजाये, नारीवा सोल किपन" किसी भी स्त्री जाति का चित्र भी नजर आ जाए तो भी सदाचारी आत्मा दृष्टि का संयम रखता है. सूर्य के सामने यदि दृष्टि चली जाए तो कैसे झुक जाते हैं. सदाचारी आत्मा को अपने संयम के रक्षण के लिए, काम के आमन्त्रण से रक्षण के लिए, दृष्टि के संयम का निर्देश दिया. तुरन्त दृष्टि नीची होनी चाहिये. कदाचित् दृष्टि में कोई आ भी जाये तो भी विकार का प्रवेश न हो. ___मां शब्द महामन्त्र है, जैसे ही आप इस शब्द का उचारण करेंगे. विषय मूर्च्छित हो जायेगा. स्वामी राम कृष्ण सदाचारी जीवन में इतने जागृत थे कि शारदा मणि उनकी धर्म पत्नी थी. व्यवहार से. परन्तु स्वयं के अन्तर में इतने जागृत थे कि पत्नी को भी मां कह कर बुलाते. बाहर के जगत का इतना ज्ञान उन्होंने प्राप्त नहीं किया - साधना के द्वारा ही उन्होनें अन्तर जगत का ज्ञान प्राप्त किया - स्वयं को जानने का ही प्रयास किया. उन्होंने कहा - जगत से मेरा क्या मतलब? उनकी स्त्री भी आती तो भी मां कहकर ही बुलाते. इतिहास में यह घटना और कहीं नहीं मिलेगी. अपनी धर्मपत्नी के प्रति भी मां की दृष्टि, तब जाकर के वह शक्ति पैदा होती है, यह बड़ी अपूर्व शक्ति है. इस शक्ति का सर्जन ब्रह्मचर्य के साधन द्वारा प्राप्त किया जाता है. सिंह की सन्तान फिर सिंह ही पैदा करती हैं. विवेकानन्द को पैदा करने वाले संन्यास जीवन देने वाले रामकृष्ण थे. इस सदाचारी जीवन की प्राप्ति उनके आदर्श से हुई, इस बात की क्रिया द्वारा ऐसी मूर्च्छित शक्तियों को जागृति किया गया. सारी दुनिया को बतला दिया कि यह क्या शक्ति है. उनकी आवाज में बोला करती, जो ताकत थी. अमेरिका में विश्वधर्म सम्मेलन में जब वे गये, कई जगह व्याख्यान के आमन्त्रण मिले. अपूर्व शक्ति तो गुरु कृपा से मिली थी. एक व्यक्ति ने प्रश्न कियाः आध्यात्मिक शक्ति का हम परिचय देखना चाहते हैं. व्यावहारिक, सैद्धान्तिक नहीं. हांलाकि साधु सन्त कभी प्रदर्शन नहीं करते. वे तो स्व दर्शन में ही रहते हैं. साधना कोई जादू नहीं कि लोगों को दिखाकर आकर्षित करे. लोगों को आकर्षित करने की कामना भी मानसिक दुराचार है. चमत्कार का प्रलोभन देना और लोगों का पथ - भ्रष्ट कर देना. साधना का लक्षण नहीं, शैतान का लक्षण है. सारे चमत्कार यहीं रह जाते हैं. आत्मा से उसका कोई सम्बन्ध नहीं. चमत्कार तो चरित्र में है. चारित्र की साधना में हैं. साधु पुरूषों का शब्द ही मन्त्र होता हैं. अन्तर से निकला शब्द ही आशीर्वाद होता है. 463 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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