SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 491
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी माख हमेशा एक दूसरे से पूरक रहे. काम की प्राप्ति न हुई तो क्रोध उपस्थित हो जायेगा. क्रोध से काम नहीं चलता तो मद आ जायेगा. उसका साथ देने वाला. यहां तक भी काम नहीं हुआ तो आगे और मित्र हैं मान. और भी आगे बढ़कर न जाने उनके परिवार में और कितने हैं? बहुत बड़ा परिवार है. उन सब की उपस्थिति हो जायेगी. सब मिलकर के आत्मा को पराजित करने का प्रयास करेंगे. सदविचार को नष्ट कर देने का, आपकी भावना को खत्म कर देने का सदैव इनका प्रयास रहेगा. बाहर का प्रलोभन ऐसा है कि वहां अन्दर का आकर्षण लुप्त हो जाता है. क्योंकि हमारी दृष्टि बाह्य है. आज तक हम बाहर ही देखते आये हैं, बाहर से ही वस्तु प्राप्त करने का प्रयास किया है. आन्तरिक वैभव का, आन्तरिक गुणों का आज तक परिचय प्राप्त नहीं किया. कभी यह नहीं सोचा कि मैं स्वयं के लिए कछ समझ. स्वयं के लिए कछ जानने का प्रयास करू. अगर यह प्रयास किया होता तो पूर्णता निश्चित मिल जाती. एक शब्द के अन्दर परिवर्तन आ गया और तुलसी दास सन्त बन गये. उपदेश देने वाला भी कोई और नहीं उनकी धर्मपत्नी. कि तुमको मेरे प्रति जितना अनुराग है यह अनुराग यदि परमात्मा के प्रति आ जाये तो तुम धन्य बन जाओ. तुम्हारा जीवन धन्य बन जाए. इस शब्द की चोट ऐसी लगी. उसी क्षण उनके अन्दर का शैतान चला गया. और सन्त प्रकट हो गया. जहां सदाचार होगा, वहां सन्त बनना तो निश्चित है. सन्त बनने के लिए शैतान से संघर्ष करना पडेगा. ये विषय और काम, क्रोध और मान सब शैतान हैं. कभी सन्त बनने नहीं देते, अन्तर द्वार को कभी खोलने नहीं देते. कभी अन्तर दृष्टि देने का ये प्रयास नहीं करते. अंधा बना करके रखते हैं. विषय के अन्दर एक प्रकार का अन्धापन आता है. जिस अंधेरे में आप बाहर देख सकते हैं. परन्तु अन्दर दृष्टि नहीं जायेगी. जीवन की सबसे बड़ी कमजोरी ह्यूमन विकनेस माना गया, व्यक्ति यहां आकर निर्बल बन जाता है, सारी साधना उसकी क्षीण हो जाती है. काम का आकर्षण ही ऐसा है. भगवान महावीर के शब्दों में कहा जाय तो साधु पुरुषों ने जो मर्यादा बनाई और उस मर्यादा में रहने का निर्देश दिया. भगवान के अनुसार चरित्र का प्राण ब्रह्मचर्य है, सदाचार. “प्राणभूतं चारित्रस्य पारमार्थिक कारणम्" आत्मा को उपार्जन करने का, सबकी प्राप्ति का, सबसे बड़ा साधन जीवन में ब्रह्मचर्य की उपासना है, काम पर विजय प्राप्त करना है. साधुता वहीं पर है. जहां चरित्र चला गया वहां सुगन्ध पैदा नहीं होगी. दुर्गन्ध पैदा होगी. दुराचार दुर्गन्ध उत्पन्न करता है. सदाचार अगरबत्ती की तरह जीवन को सुगन्धमय बनाता है. ROPIC 462 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy