SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 490
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir n EUNA गुरुवाणी: ब्रह्मचर्य का मर्म परम कृपालु आचार्य भगवन्त श्री हरि भद्र सूरि जी ने इस धर्म बिन्दु ग्रंथ के माध्यम से आत्मा की अनन्त शक्ति का परिचय दिया. आत्मा की उन मूर्च्छित शक्तियों को जागृत करने का परम साधन इन सूत्रों के द्वारा दिया. जागृति का उपाय और परिचय इन सूत्रों द्वारा दिया. जगत का व्यवहार किस प्रकार धर्ममय बनें, आचरण और धर्म की भूमिका पर अपना जीवन किस प्रकार उपस्थित हो, उसका बड़ा सुन्दर विवेचन दिया है. जगत की उत्पत्ति का कारण, जगत की प्राप्ति का कारण, कर्म को आमन्त्रण देने का निमित्त, इस सूत्र द्वारा बतलाया है. अगर व्यक्ति में जागृति का अभाव रहा, यदि आत्मा विवेक से न्य है. तो इसका परिणाम कर्म को आमन्त्रण मिलता हैं, इसके आगमन का द्वार खुलता है. मूर्छितावस्था में कर्म का प्रवेश सरल बन जाता है. इन्होंने उस द्वार को बन्द करने का साधन एवं उपचार भी बतलाया है. आज तक हमारी बाह्य दृष्टि ही रही, जगत क्या करता है? इस चर्चा में हमने जीवन पूरा कर दिया. कभी अन्तर जगत में जाकर अपने शत्रु का परिचय किया कि मेरी आत्मा के सबसे प्रबल शत्रु कौन हैं? उसका कोई परिचय प्राप्त नहीं किया. दूसरा व्यक्ति कौन है? इस परिचय के लिए काफी समय दिया, मैं कौन हूं? यह जानने का हमारे पास अवकाश नहीं है. जीवन की यह सबसे बड़ी भूल है कि हम स्वयं को पहचान नहीं पाये. एक बार यदि हमने आत्मा के मूल स्वरूप को पहचान लिया होता तो आज यह समस्या नहीं रहती. सारी गड़बड़ी यहीं से पैदा होती है. अन्तर शत्रु छः प्रकार के बतलाये. सर्वप्रथम अनादि अनन्त कालीन जो हमारी संज्ञा है, उस संज्ञा का परिचय दिया काम के द्वारा. अरिष्ड्वर्ग व्यागेनाविरुद्धार्थ प्रतिपच्येन्द्रिय जय इति इन छ: शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने का उपाय इसमें बतलाया, ये अन्तरंग शत्रु हैं. हम बाहर के शत्रुओं की चिन्ता करते हैं, बाहर के शत्रुओं से मुकाबला करने का प्रयास करते हैं. कार्य को नष्ट करने के लिए जीवन पर्यन्त हम प्रयत्न करते हैं. परन्तु कारण को यदि खत्म कर दिया जाये तो कार्य स्वयं नष्ट हो जाये. उसका कारण है स्वयं का कर्म. अन्दर से ही कर्म को खत्म कर दिया जाये तो बाहर के सारे कार्य नष्ट हो जाएंगे. ये कार्य और कारण का परिचय इस महापुरुष ने दिया. सारे जगत में क्लेश का कारण यही है. काम को अनेक अर्थ में लिया गया है. किसी भी वस्तु को प्राप्ति करने की यदि अभिलाषा हो जाये और वस्तु में यदि आसक्ति आ जाये. तो वह एक प्रकार का विषय हैं, काम के अन्तर्गत है. इन शत्रुओं का एक दूसरे के साथ बड़ा निकट का सम्बन्ध है. ये एक ही परिवार के सदस्य हैं. - जयल ADAM 461 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy