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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3 -गुरुवाणी आत्मा के मित्र और शत्रु का परिचय दूं. कहां आपका वास्तविक उपचार हो सकता है. कहां से रोग को मिटाया जा सकता है, उसे बतला दूं. सारी बीमारी की दवा यहां होती है. जितने भी साधु सन्त हैं, ये चिकित्सक हैं. सबसे बडे वैद्य तो तीर्थंकर परमात्मा को माना गया. जगत के सारे रोगों की दवा वे जानते हैं और उपाय बतलाते हैं. उनके आधीन रहकर के सेवा अर्पण करने वाले डाक्टर साथ हैं. परमात्मा तीर्थंकर की ताकत सहायक है. जो जगत के सबसे बड़े सर्जन हैं. जो जगत से मुक्त कर दें, वह जानकारी परमात्मा में है. उनकी आज्ञानुसार आत्मा को नीरोग करने वाले निर्ग्रन्थ साधु हैं. हमारे डाक्टर जितने भी मिलेंगे. ग्रंथि रहित निर्ग्रन्थ साधु मिलेंगे. उनके अन्दर जरा भी भौतिक प्रलोभन नहीं. सेवा के द्वारा समर्पित आरोग्य को देने वाले साधु होते हैं. हमारी जो आध्यात्मिक चिकित्सालय है, सत्संग बाजार क्रोध कैसे शान्त किया जाये, उपाय है. कोई ऐसी बीमारी नहीं कि जिसकी दवा न हो. तीर्थंकर परमात्मा ने अपने ज्ञान से सब उपचार बतलाया. आज के डाक्टर भले ही शरीर के लिए खोज करते हों, अधूरा ज्ञान होगा. बहुत सी बीमारियों की जानकारी नहीं होगी. दवा नहीं होगी. अभी उनकी खोज चालू है. तीर्थंकर भगवान ने तो सारे रोग जान लिये. पहचान लिए. उसका उपचार बतला दिया. उसे खत्म करने का रास्ता बतला दिया. काम कैसे मरे यह बीमारी. यह बीमारी कैसे चली जाये. वायरस कैसे खत्म किया जाये. क्रोध को कैसे शान्त किया जाये: ज्वर है. क्रोध को ज्वर की उपमा दी गई है. कितना भी समझाइये ये नहीं मानेगा. आपको एक सौ चार डिग्री बुखार हो, उस समय आपका कोई मित्र डिश लेकर के आये, गुलाब जामुन, रसगुल्ला, समोसा यदि किसी डिश में ला करके दे, आपको रुचिकर लगेगा? उसकी गंध भी अप्रिय लगेगी. जबरदस्ती खिलाए तो वोमिट हो जायेगी. पित्त विकृत बन जाता है. उसको ले कर के स्वाद भी विकृत बन जायेगा. खाने की रुचि खत्म हो जायेगी. उस बुखार में कितनी ही सुन्दर भोजन की सामग्री ही लाकर के दिया जाये तो, देखना भी पसन्द नहीं. उसकी खुशबू भी पसन्द नहीं. वोमिट हो जाये. हमारी यह स्थिति है. मै रोज सुन्दर से सुन्दर आत्मा का भोजन लेकर आऊं. "ज्ञानामृतं भोजनम्"। जो आत्मा का भोजन है. डिश में सजा करके लाऊं. एक घण्टे तक पसीना उतारूं. प्रवचन दं. आपके सामने आत्मा की खुराक रखं, व्रत, नियम, सदाचार सत्य यह सब आत्मा के अति सुन्दर भोजन हैं, एक बार यदि आत्मा ग्रहण करे, तृप्त बन जाये, अति स्वादपूर्ण है. परन्तु अभी तक बुखार कम नहीं हुआ, अपना डिश प्लेट वापिस लेना पड़ता है. यह बुखार जब कम होगा तब खाने की रुचि पैदा होगी. अगर विषय का ज्वर नहीं 459 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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