________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी है. इस प्रकार से शायद मंदिर भी नहीं जाते. कितनी हाजिरी इस कोर्ट में होती है?" जज ने ऐसे ही आश्चर्य से पूछा - "कभी तुम एक भी हए या रोज लड़ते रहते हो." "जीवन में एक बार हम सब परिवार के लोग एक हो गये थे." "कैसे?" "घर में आग लगी थी, रात का समय था, सब एक हो गये थे." अगर इतनी भी अक्ल अपने अन्दर आ जाये कि अन्दर क्रोध की आग लगी है, उस समय यदि अपने अन्दर एकता आ जाये. उस समय यदि संगठन की भावना आ जाये. उस समय एक होकर के सब अपना-अपना कार्य करें, नहीं तो यह क्रोध तो नाश करेगा ही. अच्छे-अच्छे महापुरुषों की साधना को जला कर राख कर डाला. क्या ताकत है कि इस आग में स्वयं का रक्षण करें. __किसी भी हालत में अपनी आत्मा का मुझे रक्षण करना है. स्वामी रामतीर्थ जी अमेरिका से लौट करके आ रहे थे. बहुत बड़े गणित के प्रोफेसर थे. संन्यास ले लिया था, बड़े मस्त व्यक्ति थे. हांग कांग के अन्दर अपने एक मित्र के घर ठहरे. आज से अस्सी वर्ष पहले. ज्यादातर मकान वहां लकड़ी के होते थे. मित्र का बंगला भी लकडी का था. रात्रि में अचानक ही पड़ोस में भयंकर आग लगी. लोग सहयोग देने गये. आग बुझाने के लिए घर के सामान को बचाने के लिए. पड़ोसियों ने मिलकर के उनका सामान बचाया. सब कुछ बचाया. किसी ने पूछा - "इस मकान का मालिक कहां है?" वह तो भूल ही गए. मालिक जल कर अन्दर राख हो गया. रामतीर्थ ने डायरी में लिखा “सामान बचा लिया गया, मालिक जलकर राख हो गया” हमारी भी ऐसी आदत. क्रोध की आग में बेचारा आत्मा राम भाई तो जलता है ओर संसार बचा लिया जाता है दुकान, मकान, परिवार, ये सब बाहर की चीजें हैं, परन्तु क्रोध की आग में अन्दर का मालिक जल रहा है, कभी ध्यान गया उधर? मकान का मालिक जल जाये और सामान बचा ले, तो सामान बचाने का मूल्य क्या? ___ आत्मा यदि क्रोध, की आग में जल कर राख बन जाये, संसार को आप बचाते रहे तो बचाने का कोई मूल्य नहीं. लक्ष्य तो आत्मा को बचाने का होना चाहिए. एक-एक शत्र आत्मा के लिए खतरनाक माना गया. काम, क्रोध, लोभ, मान, मद, फिर संसार को प्राप्त करने में प्रसन्नता व हर्ष. आत्मा की प्रसन्नता अलग चीज है, उसमें विकार भरा हुआ है. प्रदूषित वायु है. उसका पान करना स्वास्थ्य के लिए घातक है. शुद्ध वायुपान जो आत्मा की प्रसन्नता कहलाती है, उसे प्रसन्नता की पुष्टि का साधन माना गया. ऐसा हर्ष भी नहीं होना चाहिए जो पाप से उपार्जित किया हो. पाप से उपार्जित की प्रसन्नता आत्मा के लिए घातक है. ये छ: आत्मा के परम शत्रु हैं, इन शत्रुओं से मुझे आत्मा का रक्षण करना है. of 458 For Private And Personal Use Only