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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी हैं. कमजोरी नहीं, बहुत बड़ी ताकत है उसके अन्दर क्रोध करके दूसरों पर रोब डालकर / हम उसे बहादुरी मानते हैं. यह बहादुरी नहीं वह आपकी कमजोरी के लक्षण है., वह कायरता है. महावीर ने कहा - "शत्रुओं को खत्म करने का कभी प्रयास मत करो, शत्रुता बढेगी. शत्रुता को ही खत्म कर दो सारे शत्रु मिट जायेंगे, अन्दर से शत्रुता को मिटा दीजिए. बाहर के सारे शत्रु मिट जायेंगे. यदि बाहर से शत्रुओं के नाश का उपाय किया तो शत्रुता बढेगी. वैर की परम्परा बढेगी. अन्दर से शत्रुता को ही खत्म कर दीजिए ताकि बाहर के सारे शत्रु मित्रवत् बन जायें. शत्रुओं का व्यवहार मित्रों जैसा बन जायें." तुलसी दास की भाषा में यदि कहूं : क्रोध मान मद लोभ की, जब तक मन में खान. का पडित का मूरख, दोनों एक समान. यह सन्त का कथन है, चाहे कितना ही बड़ा विद्वान हो यदि अन्दर में क्रोध, मान, मद, हर्ष, माया, इनकी खान हो जाये तो पंडित और मूर्ख दोनों एक समान माने गये हैं. मफतलाल बडा होशियार था, बड़ा चालाक था. परन्तु चालाकी कहीं न कहीं तो पकड़ी जायेगी. रेलवे एक्सीडेंट के अन्दर मफतलाल ने भी बुद्धि चलाई क्यों न मुफ्त का लाभ लिया जाये. क्लेम लिखा दिया. डाक्टर के पास गया, पैसे देकर प्रमाणपत्र लिखवा लिया . मेरा हाथ काम नहीं करता. 50 हजार का क्लेम कर दिया. इस दुर्घटना में मेरे हाथ को चोट आई. चोट के कारण हाथ से कुछ काम नहीं कर सकता. बेकार बैठा हूँ 50 हजार रुपये का क्लेम. सरकारी वकील ने सारी बात सुनी. जब काल इजलास हुआ उस समय पर वकील बडे होशियार होते है. उलट पुलट कर जब बात निकाली. कहा - “मफत लाल. यह बात मै मानता हूँ, तम्हारे हाथ पर चोट आई. हकीकत है, तुम बैडेंज बांध कर आये, डाक्टर का प्रमाणपत्र लेकर आये, सब कबूल. तुम कहते हो, हाथ से काम नहीं होता. हाथ ऊंचा नहीं होता, परन्तु एक्सीडेन्ट से पहले तुम्हारा हाथ कितना ऊंचा होता था." "इतना." पकडा गया. आप कितनी भी चालाकी करें, कितनी ही बुद्धि दौड़ाएं कहीं न कहीं तो बेस मिलेगा. लूज प्वाईट मिलेगा, व्यक्ति पकड़ा जाता है. आदत से लाचार बिना लड़े, रोटी पचती नहीं, हजम होती नहीं. रोज घर में महाभारत चलता है रोज दोनों पति पत्नी में, दोनों कोर्ट में हाजिर होते. कभी पिता, पुत्र. कभी भाई-भाई आते. जज ने पूछा - “मफत लाल यह क्या कारण है? रोज तुम्हारी हाजिरी कोर्ट में होती दि 457 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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