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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Cyanmandir -गुरुवाणी ". मुझे कुछ नहीं मालूम मैं तो डोरी समझ करके चढ़ गया.” सन्त तुलसी दास की स्त्री ऐसी सती थी, एक शब्द उनको कहा और तुलसी दास सन्त बन गये. सारा विषय खत्म हो गया. रात्रि के समय सन्त तुलसी दास से उनकी पत्नी ने कहा - कि तुम मेरे वियोग का दर्द सहन नहीं कर पाये, और इस भयंकर रात्रि में नदी तैर करके, सांप पकड कर के मेरे यहां आ गए. मैं कहती साप पकड कर कमर यहा आ गए. म कहती ह जरा ध्यान देना. अस्थि चर्ममय देह यह, तासों ऐसी प्रीति।। ऐसी जो रघुनाथ में, तो न होत भव भीति।। यह उनकी पत्नी का कथन था. हाड मांस खून से भरा शरीर, मल मूत्र. यह उनकी पत्नी का कथन था. कि यह मल मूत्र से भरा, गन्दगी से भरा शरीर इस पर तुमको इतना राग है, इतना प्रेम है.. अगर यह प्रेम परमात्मा से हो जाये तो भव सागर तर जाओ. उसी समय सन्त तुलसी दास वहां से लौट गये. घर बार छोड़ दिये. वैराग्य प्राप्त कर लिया. प्रेम राम का प्रेम बन गया. एक शब्द की मार ने उसकी आत्मा को जगा दिया. कब कौन सा शब्द चोट कर जाये, अपनी आस्था को जगा दे और परमात्मा का अनुराग पैदा कर दे, इसी भावना से यहां शाब्दिक प्रहार उस आचार्य ने सूत्र के द्वारा दिया. कहा कि जगत में सबसे शत्रु आत्मा का काम है. काम के रक्षण का परम मित्र क्रोध साथ में ही रहता है. प्रति क्षण जलाता है. सारी आत्मा के वैभव, सम्पत्ति को जला कर राख कर देता है. अनादिकाल से इन शत्रुओं का इस पर अधिकार है. मकान में रहा हुआ आपके भाड़े में रहने वाले किरायेदार. अगर आप निकालने का विचार करें तो आधा जीवन चला जाता है. उसे निकालने में पोकेट खाली करना पडता है. तो भी निकले या नहीं निकले. एक सामान्य किरायेदार को निकालने में भी यह दिक्कत, जिनका अनादि काल से आत्मा पर अधिकार है, वह कैसे निकल जायेगा. कुछ उपाय किया और चला जायेगा. इस भूल में मत रहना. निकालने का सतत प्रयास करना पड़ेगा. एक भव नहीं अनेक भवों की साधना समर्पित करनी पड़ेगी. तब इस गुलामी से आप छूटेंगे. काम, क्रोध दोनों आत्मा के भयंकर शत्रु हैं. कार्य करवा देते हैं. विषय में अन्धा बना व्यक्ति कितना भयंकर अनर्थ करता है. क्रोध अपनी आत्मा का कितना बड़ा नाश कर देता है. आपको जलाकर के अन्दर से राख कर देता है. कभी हमने शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक तीनों दृष्टि से नुकसान करने वाले इस क्रोध के बारे में, जिसे जहर माना गया, अमृत की तरह रोज इसका सेवन करते हैं, कभी सोचा. ___ व्यक्ति सोचता है - क्रोध से मेरा रक्षण होता है, आपके जीवन की बरबादी होती है जो ताकत प्रेम में है, जिसे रसायन माना गया. टोनिक माना गया, आत्मा को पुष्ट करने का परम साधन माना गया. हम उसकी तो उपेक्षा करते हैं, प्रेम को हम कमजोरी समझते 456 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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