SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 484
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी डाक्टर बडा दयालु होता है, मरीज कैसा भी व्यवहार करे तो भी डाक्टर सहन करके उसका उपचार करता है. बालक को इन्जेक्शन देते हैं बालक रोयेगा, मां को थप्पड लगायेगा: हर तरह से बचने की कोशिश करेगा. परन्तु डाक्टर का हृदय बडा दयालु होता है, वह बालक की चेष्टा पर ध्यान नहीं देता, वह तो इन्जेक्शन लगायेगा. साधु सन्त भी बडे दयालु होते हैं. ऐसे गलत व्यक्तियों के प्रति जरा भी ध्यान नहीं देते. वह तो बोलेगा संसारी आत्मा है, साधु एक शब्द नहीं बोला. जरा गर्म कर बोला - "तू कौन है? अपना परिचय तो दे? सन्त ने कहा - एक व्यक्ति की इन्तजार में यहां बैठा हूं. किसी की प्रतीक्षा में मैं बैठा हूँ, "किसी का इन्तजार कर रहा है यहां बैठे? कौन आएगा? अगर किसी व्यक्ति की खोज करनी है तो शहर में जाओ. गांव में जाओ, मकान का पता लेकर के उसे खोजो, तब मिलेगा, यहां थोड़ी मिलने वाला है." "अरे भाई. मैं कहां जाऊं? कहां भटकं? मैंने सोचा, यहीं बैठ जाऊं मिलेगा तो सही, आज नहीं तो कल. तुम जानते हो, यह श्मशान है. निश्चित पता है, खोया व्यक्ति यहीं आयेगा. मुझे खोजने की कोई जरूरत नहीं, बिना खोजे यहां लाया जायेगा. इसीलिए उसकी प्रतीक्षा में यहा बैठा हूँ." इस एक शब्द का असर उसके हृदय पर ऐसा कर गया, चरणों में गिर गया फिर उसे समझाया, अक्ल आ गई. एक शैतान भी सन्त बन गया. शब्द का प्रहार ऐसा होता है, आपकी सुषुप्त चेतना को जागृत कर देता है. सन्त तुलसी दास परिवार में रहते थे. एक सदगृहस्थ थे. संयोग से पत्नी का जब वियोग हुआ, वे वियोग के दर्द को सहन नहीं कर पाये. भरी नदी, बाढ़ आई हुई थी. परन्तु स्त्री के वियोग ने ऐसा दर्द पैदा किया कि रात्रि में घर से निकल गए ससुराल जाने के लिए. नदी तैर कर के पहंच गये. घर के नीचे गए, एक सर्प लटक रहा था. डोरी का, भ्रम समझकर उसका आश्रय लिया. ऐसा कर के पिछले दरवाजे से ऊपर पहुंच गए. भयंकर अंधकार से भरी रात्रि, बरसात की रात अचानक घर में इस प्रकार से आना. अपनी स्त्री को जगाया, चमक कर उठी कौन है? "-तुलसी दास." "-यहां इतनी रात्रि में कैसे आये?" "-तुम्हारा प्रेम यहां खींचकर तो आया." "-नदी में तो बाढ आई हुई है?" ." मुझे कुछ नहीं दिखा. विषय की बाढ़ में जगत नजर ही नहीं आता है." "-यहां कैसे चढ़ गये?" प्रकाश लेकर देखा तो सर्प लटक रहा है. OU 455 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy