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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी "काम, क्रोध, लोभ, मान, मद, ईर्ष्या ये छ: अन्तस्थ षटरिपु हैं. छ: का ग्रुप है. ये सब मिलकर के आज तक हमें संसार में नचाते चले आ रहे हैं. मदारी के बन्दर की तरह आज तक नाचते चले आये. इशारे पर नचाता है. दुकान में देखिए हम नाचते हैं. ___ "कर्म नचावत तिमही नाचत" जैसे ये नचाये वैसे हमें नाचना पडता है. नर्तकी की तरह नाचते हैं. दुकान में नाचते हैं, मकान में नाचते हैं जरा सी प्राप्ति हुई. नाचने वाली को इनाम दीजिए और खुश होकर के नाचती है और ज्यादा प्रसन्न होगी. मन का स्वभाव ऐसा है, नर्तकी की तरह रोज नाचते हैं. नृत्य करते हैं जरा सा संसार का इनाम मिला, दो पैसा मिला, वापिस नाचते हैं दुगुनी शक्ति के साथ. यदि आप नर्तकी शब्द को औंधा कर दें तो बडा सुन्दर चमत्कार हो जायेगा. नर्तकी शब्द है उसको औंधा करिए क्या बनता है-कीर्तन, यदि परमात्मा का गुणगान और हरि कीर्तन आ जाये, आत्मा के गुणों का कीर्तन यदि शुरू हो जो, तो चमत्कार कितना सुन्दर होगा. यह कर्म आपके सामने नाचने लगेगा. जैसा आप नचाएं, वैसे कर्म नाचेगा. नर्तकी को कभी औंधा करने का प्रयास ही नहीं किया कि कीर्तन बन जाये और जीवन की आराधना में मै स्वयं का मालिक बन जाऊं. कर्म मेरा गुलाम बन कर रहे. कर्म तो रहेगा. मुझे एक व्यक्ति ने कहा - "आप कहते हैं साधु सन्त स्वतंत्र रहते हैं. आजाद होते हैं. कर्म तो आपके ऊपर भी है. हमारे जैसे संसारियों के ऊपर भी कर्म विद्यमान है. दोनों जगह कर्म की उपस्थिति हैं, फिर आप कहते हैं हम स्वतंत्र हैं, यह स्वतन्त्रता किस प्रकार की है?" मैंने कहा - “आपकी बात सही है, कर्म अन्दर है, जहां तक संसार में हूँ, वह समअवस्था है, अपूर्ण अवस्था है, वहां तक कर्म का साम्राज्य तो अन्दर रहेगा. परन्तु प्रक्रिया में अन्तर आ जायेगा." पूछा - "कैसे. मैनें कहा - "आपने रास्ते में देखा होगा पूर्ण लस गुनहगार को पकड़कर ले जाती है. अपराधियों को हथकड़ी लगाकर ले जाती है. आप मुझे बतलाइये उस समय पुलिस कहां रहती है. पीछे नजर के सामने अपराधी होता है. हथकड़ी लगा देते हैं, पीछे पकड़कर पुलिस वाले चलते हैं. पुलिस तो है.” ___ "कभी कोई मन्त्री निकलता हो, उस समय पर भी पुलिस होती है, दोनों जगह पुलिस है, वहां पर पुलिस आगे रहती है. रक्षण के लिए पहले से व्यवस्था रहती है दोनों जगह पुलिस है, मन्त्री चले तो भी पुलिस, चोर को पकड़े वहां भी पुलिस." संसारी और साधु में इतना ही अन्तर है. संसारी आत्माओं के साथ क्यों अपराधी की तरह कार्य करता है. हथकड़ी लगा कर डोरी अपने हाथ में रखता है. यह नजर से कहीं 453 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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