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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %3Dगुरुवाणी हैं. राग का साम्राज्य ही नहीं. कहां से आनन्द मिलेगा. आत्मा को न्याय तो मिलता ही नहीं जिसका परिणाम दुख दर्द से घिरा जीवन. रोकर के जीवन पूरा करते हैं. तडप करके मर जाते हैं उस मरने का भी मूल्य नहीं. __ मृत्यु भी ऐसी होनी चाहिए जो दूसरों को प्रेरणा दे. अनेक व्यक्तियों को आपकी मौत से भी शिक्षा मिले. ऐसी मृत्यु के लिए कभी कोई प्रयास नहीं किया. सूत्रकार ने सर्व प्रथम आत्मा के शत्रु का परिचय दिया. जहां अन्तर जगत के शत्रु और मित्र दोनों का परिचय दिया गया. आत्मा के गुण ही आत्मा के मित्र है. कभी उससे अलग नहीं होते. आत्मा और आत्मा के गुण कभी अलग नहीं रहते. पानी और पानी की ठण्डक कभी अलग नहीं हो सकती. आग और आग की गर्मी को आप अलग करें तो वह अलग होने वाला नहीं. इसी तरह आत्मा के गुण दर्शन, ज्ञान, चरित्र, तप, वीर्य और उपयोग ये छः लक्षण बतलाए, इनसे आत्मा युक्त है, वे कभी उससे अलग होने वाले नहीं. हम रोज देखते है, हमारे जीवन की हर रोज की घटना है, हमें सिखाती है, हमने कभी उस तरफ ध्यान नहीं दिया. क्रोध करना, काम का सेवन करना, आत्मा के लक्षण नहीं हैं, ये वैभाविक लक्षण हैं. बाहर से आये कर्म परमाणुओं का यह कार्य है, अन्तरात्मा के गुणों में दुराचार है ही नहीं, वे सदाचार से परिपूर्ण हैं. ये तो वैभाविक लक्षण है. स्वभाव दशा का लक्षण नहीं, विभाव दशा में भटकने का लक्षण है. आत्मा जब विचारों से आत्मा के वर्तुल से बाहर चली जाये, उसके बाद ये लक्षण प्रकट होते हैं. मर्यादा का उल्लंघन और उसके ये परिणाम. गर्म पानी हो रहा था, किसी कवि ने सहज में प्रश्न किया - भाई. तुम तो ठण्डे हो, तेरा स्वभाव शीतल है, तेरे अन्दर यह उष्णता कैसे आई? गर्मी कैसे आई? बौखलाहट कहां से आई? क्योंकि उबलता है तो आवाज भी करता है. और कवि को जबाव दिया पानी ने - मेरा स्वभाव बडा शीतल है. मैं स्वयं ठण्डा हूँ परन्तु यह बीच में तपेला है इसलिए मेरे अन्दर गर्मी आई. मुझे उबलना पड़ा. मेरा धर्म नहीं. यह गर्मी मेरा स्वभाव नहीं है. ये सारी उत्तेजना ये इस तपेले के निमित्त से आई. अगर ये तपेला निकल जाये तो चूल्हे को चमत्कार दिखला दूं. एक क्षण में आग बुझा दूं. ___आत्मा स्वभाव से शान्त है, शीतल है. उत्तेजना उसका लक्षण नहीं. क्रोध, विषय आत्मा के लक्षण नहीं. परन्तु आत्मा ने कहा-मैं क्या करूं? यह मन का तपेला बीच में ऐसा बैठा है. यह निमित्त इतना खतरनाक है कि जगत की उतेजना और गर्मी मेरे अन्दर आ जाती है, सारी उष्णता मेरे अन्दर आ जाती है. मन के तपेले को आत्मा से कैसे निकालना है विचार करें. सर्व प्रथम यहां आत्मा के शत्रु का परिचय दिया. आत्मा का प्रथम शत्रु काम है. 452 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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