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=गुरुवाणी
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पाणी
आत्म -संतोष के उपाय
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अनन्त उपकारी, परम कृपालु, परमात्मा जिनेश्वर ने जगत के जीवमात्र के कल्याण के लिए धर्म प्रवचन के द्वारा मोक्ष मार्ग का परिचय दिया. किस प्रकार व्यक्ति अपनी साधना के द्वारा स्वयं की पूर्णता को प्राप्त करे - उसका सम्पूर्ण मार्ग-दर्शन परमात्मा ने अपने प्रवचन द्वारा किया है.
"सर्वत्र सर्वस्य सदा प्रवृत्तिः दुःखस्य नाशाय सुखस्य हेतुः। कदापि दुःखम् न विनाशमेति सुखम् न कस्यापि भजेंतेस्थिरत्वम् ॥" जीवन के अनादि-अनन्त काल के इतिहास में जीव मात्र का यही प्रयत्न रहा कि सुख की प्राप्ति हो परन्तु आज तक वह सुख मिला नहीं. प्राणी मात्र का यह प्रयास रहा कि दुःखों का नाश हो, परन्तु आज तक दुःख नष्ट हुआ नहीं, सारा प्रयत्न निष्फल गया - सुख की प्राप्ति मृगतृष्णा ही रही, दुःख को नष्ट करने का सारा प्रयास विफल रहा, कारण? विफलता के कारणों को हमने खोजा ही नहीं. कारण था -बिना आधारशिला का मकान बनाते रहे. बिना चिन्तन के हम आराधना करते रहे. लक्ष्य को भल कर के हम चलते रहे और इसी कारण आज तक हमारी सुखप्राप्ति की साधना असफल रही. मानसिक अशान्ति से आज हमारा पूरा जीवन त्रस्त है. हर व्यक्ति ने अपने क्लेशों से स्वय को पीड़ित कर रखा है.
प्रभु ने सुख प्राप्ति का अत्यन्त सुन्दर मार्ग बताया. आत्म-संतोष के द्वारा उस परम वैभव को हम प्राप्त कर सकते हैं. यदि इच्छा और तृष्णा पर नियन्त्रण आ जाए तो मानसिक अशान्ति का नाश सहज हो सकता है. असन्तोष की अग्नि भयंकर है. चित्त की सारी प्रसन्नता उसमें जल कर राख हो सकती है,
व्यक्ति हर क्रिया में प्रतिफल की कामना रखता है. यहां तक कि धर्मक्रिया में भी वह अपेक्षा रखता है कि कुछ मिल जाए. यही असंतोष विनाश का कारण है.
अपने प्रारब्ध से जो सहज रूप में मिल जाए, उसी में संतोष होना चाहिये. हमारा सारा पुरुषार्थ अर्थ और काम पर ही केन्द्रित रहा. धर्म और मोक्ष का परुषार्थ गौण बन गया. सुख की प्राप्ति के जो साधन थे, उनको गौण बना दिया. गहस्थ जीवन में अर्थ और काम की प्राप्ति गौण विषय होना चाहिए था, उसे हमने मुख्य बना लिया. सारी समस्या, सारी विषमता यहीं से उत्पन्न हुयी.
सृष्टि में हर पदार्थ का मूल्य है परन्तु व्यक्ति ने स्वयं का मूल्यांकन नहीं किया. जन्म-जन्मान्तर की वर्षों की साधना के उपरान्त मनुष्य ने मानव-काया धारण कर मोक्ष का यह प्रवेश-द्वार प्राप्त किया है. इस मनुष्य जीवन की प्राप्ति के लिए भूतकाल में उसने बहत से बलिदान किए और उसी की परिणति के रूप में वह मानव रूप में अवतरित
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