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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी कुत्ते की आदत, उसकी दृष्टि अलग है. आप यदि पत्थर फेंकते हैं तो वह आपको छोड़ देगा, पत्थर को काटेगा. आप यदि लकड़ी से प्रहार करते हैं, आप पर प्रहार नहीं करेगा, लकडी को काटेगा, हमारी ऐसी आदत है. कोई व्यक्ति कर्म का निमित्त बनकर के आया, आप उससे झगड़ेंगे. तू मेरे को ऐसा कहने वाला कौन? निमित्त को ले करके श्वान दृष्टि की तरह निमित्त को ही पकडेंगे. परन्तु ज्ञानी पुरुष कारण को पकडेंगे, निमित्त को छोड़ देंगे. निमित्त का जन्म कहां से हुआ. मेरे कर्म से. अन्तर शत्रुओं से? वे अन्दर ही अटैक करेंगे. अन्तर शत्रुओं को ही खतम करने का प्रयास करेंगे. बाहर के शत्रु स्वयं ही मर जाएंगे. घर में स्वीच होता है हजारों लाइट जलते हैं, किस किस को बुझाएं. मेन स्वीच बन्द करिए सभी लाइट बुझ जाएगी. मुख्य कारण तो अपने कर्म हैं, अन्तर की वासना हैं, जिसको लेकर के बाहर से समस्या पैदा हुई. बाहर की समस्या का समाधान बाहर खोजने से नहीं मिलेगा. अन्दर की गहराई से ही मिलेगा. समस्या का समाधान हम बाहर खोजते हैं. खोजना है अन्दर. इन्होंने स्पष्ट कह दिया ये सारे शत्रु अपने अन्दर में बैठे हैं. ___ हमने बाहर से राम की रामायण पढी. परन्तु अन्दर से आत्मा की रामायण पढ़ने का कभी प्रयास ही नहीं किया. आध्यात्मिक दृष्टि से अपनी आत्मा में स्वयं राम हैं. राम शब्द की जो संस्कृत से व्याख्या की है "रमतेइति रामः" क्रीडार्थ, खेल के अर्थ में इसका परिचय दिया है. आत्म दशा में मग्न रहें, आत्म दशा में क्रीडा करें. आत्म दशा के परमानन्द का अनुभव प्राप्त करें, उस राम शब्द का अर्थ, अपनी आत्मा के वर्तन में ही रहे. आत्मा स्वयं राम है, पर्यायवाची है. आप आत्मा कहें या राम कहें, समानार्थी है. आध्यात्मिक दृष्टि से स्वयं आत्मा ही राम है. आप में रमा हुआ धर्म का प्रेम और धर्म का अनुराग वही हनुमान है. राम के प्रति हनुमान का कैसा अनुराग था. जरा गहरी दृष्टि से सोचिए, यदि ऐसा अनुराग आत्मा के प्रति आ जाए तो जीवन हनुमान जैसा बन जाए. आत्मा में रमा हुआ विवेक ही लक्ष्मण है. विवेक दृष्टि-लक्ष्मण का साथ और सहयोग मिला, तब राम को बल मिला. उनके पुरुषार्थ में एक अलग प्रकार की जागृति आई. आत्मा में रमी हुई समता, शान्ति, वही सीता है. आत्मा में रमी हुई इच्छा और तृष्णा, वहीं लंका नगरी है. अन्दर जगत की वहीं लंका नगरी है. आत्मा में रमा हुआ लोभ ही रावण है. जो आपकी आत्मा में रमी समता, शान्ति, प्रेम दृष्टि रहते हैं. उसका हरण इस रावण ने कर लिया है. आप तक उसके वियोग का दर्द हमारे अन्दर पैदा नहीं हुआ. समता तो अन्दर तक उसमें रमा रावण हरण कर चुका है. असंतोष और अशान्ति की आग में से हर रोज जल रहा हूँ. बाहर से प्राप्त करने से आत्मा को शान्ति या समाधि नहीं मिलेगी. 448 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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