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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी है. चित्त को विश्राम देने वाला बनता है. ऐसी विश्रान्ति के लिए धर्म का आश्रय लेना पड़ता है. स्वयं को समझाने का प्रयास करें, बाहर की हर चीज को हम जानते हैं. बाहर की जानकारी हम रखते हैं. परन्तु जब बाहर की जानकारी प्राप्त करेंगे, वही सही तरीका होगा, वही जानकारी वास्तविक ज्ञान बनेगी. संसार की जानकारी ज्ञान नहीं अपितु अज्ञान माना गया. जहां आत्मा का अहित होता है, वह ज्ञान हमेशा अज्ञान माना गया है, वह ज्ञान आत्मा के लिए शत्रु तुल्य बन जाता है. आत्मा के गुणों का नाश करके अगर जगत की प्राप्ति करते हैं, उसका कोई मूल्य नहीं है. सूत्रकार ने आन्तरिक जगत का परिचय बडे सुन्दर प्रकार से दिया है. आज तक तो बाहर के व्यवहार का परिचय दिया. परन्तु सूत्रकार ने बड़ी कुशलतापूर्ण आंतरिक हृदय का परिचय इस सूत्र द्वारा दिया. “अरिषड्वर्गत्यागेन विरुद्धार्थ पतिप्रत्येन्द्रिय जय इति।" एक छोटा सा सूत्र है और बड़ा रहस्य इसमें है. जीवन की सारी समस्या इसमें रखी गई है. इसका उपाय भी बतलाया है. सूत्रकार ने बहुत विवेकपूर्वक आपके जीवन का निदान करके, बीमारी क्या है, उसका पता लगाया, बीमारी का परिचय दिया. किस प्रकार की बीमारी है, उसका उपचार भी साथ में बतलाया. किस तरह का पथ्य पालन करना, आचार के द्वारा वह भी इसमें बतलाया है. व्यक्ति हमेशा बाह्य दृष्टि से पीडित है. हमारी अज्ञान दशा कि हम तुरन्त मान लेते हैं, यह मेरा शत्रु है. परन्तु उसने कभी अन्दर झांककर के नहीं देखा कि सब से बड़ा शत्रु तो अन्दर बैठा है. ये बाहर के शत्रु तो निमित्त मात्र हैं, निमित्त को देखकर के यदि आप कारण को भूल गये कि निमित्त का कारण कौन है? मेरे कर्म हैं. अगर मेरे अन्दर कर्म नहीं होता तो निमित्त की उपस्थिति कहां से होती? ___ कोई न कोई कार्य मैंने ऐसा किया जिससे इन निमित्तों को मैंने जन्म दिया. वही कर्म मुख्य कारण है बाहर के शत्रुओं को पैदा करने का. हमारे पास दृष्टि कैसी होनी चाहिए. सिंह दृष्टि. कैसी? कवियों ने बड़ी सुन्दर कल्पना की है. उस कल्पना में जीवन की वास्तविकता है. जीवन का सत्य छिपा हुआ है. ___आप सिंह का शिकार करने जाए. यदि सिंह की दृष्टि में आप नजर आ जाएं, आपने अगर तीर चलाया या फायरिंग की, या किसी भी प्रकार के साधन से उस पर आक्रमण किया तो सिंह की आदत है, वह तीर को नहीं पकडेगा. भाले बरछे को नहीं पकडेगा. वह सीधा आप पर आक्रमण करेगा. कारण कौन रहा है? मारने वाले व्यक्ति पर ही सिंह आक्रमण करेगा. 447 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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