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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरुवाणी दे रहे हो.” साब, मैं हूं, तो सातवीं कक्षा का विद्यार्थी, नौंवी कक्षा में मेरा मित्र पढ़ता है. उसने कहा-"यार, मुझे आज किक्रेट मैच देखने जाना है. तुम मेरी कक्षा में हाजिरी दे देना. मित्र के सहयोग के लिए मैं गया था और इतने में आपका आना हुआ और क्लास के बच्चों ने मुझे पकड़ा और कहा यार, तू नौंवी में पढ़ता है, सातवीं का जवाब दे देना. आपने आते ही प्रश्न किया और मैंने जबाव दे दिया. आपने धन्यवाद दिया. मैं अपनी नौंवी कक्षा में बैठ गया." बिल्कुल साफ कह दिया. हिचक कोई नहीं. भाषण में कोई लज्जा नहीं, बड़ा गुस्सा आया, इन्सपैक्टर को. इसने मुझे बेवकूफ बनाया है. क्लास मास्टर को बुलाया, और डांटा “तुम अन्धे हो. गलत क्लास का लड़का तुम्हारे यहां आकर के हाजिरी भरके जाता है? तुम्हारे में इतनी अक्ल नहीं?" अध्यापक ने कहा-“क्षमा करिये, हमसे गलती हुई, भूल हुई जो इस क्लास के शिक्षक हैं, वह मेरे अच्छे मित्र हैं, उन्होंने कहा-मुझे आज मैच जाना है, मेरी क्लास को तुम सम्भाल लेना. वह शिक्षक मैच में गये और मै उनकी क्लास में आ गया. इतने में ही आपका आना हुआ. मै इस क्लास का टीचर नहीं हैं, क्लास टीचर तो मैच में गये." ___“मैं तुमको नौकरी से बरखास्त करता हूँ,” कुर्सी की गर्मी बोल रही थी. उस गरीब व्यक्ति के एक सामान्य भूल की इतनी सजा. इन्सपैक्टर साहब क्लास से गुस्से में निकले जाकर बैठे जीप में, शिक्षक दौड़ता हुआ गया, पांव पकड़ा, "मुझे माफ करिये. कुछ भूल हो गई, फिर कभी जीवन में वैसी भूल नहीं होगी. गरीब हूँ बहुत बड़ा परिवार है, भूखा मर जायेगा. जरा आप ध्यान दीजिए. मैने तो सोचा था वरदान देगें लेकिन आप तो अभिशाप देकर जा रहे हैं." पांव में गिरकर शिक्षक रोने लगा. बड़ी चोट लगी. इन्सपैक्टर को थोड़ी दया आई. पास में बुलाकर शिक्षक को कहा-“मिस्टर डु नोट वरी, चिन्ता क्यों करते हो, वह असली इन्सपैक्टर भी मैच में गया, मैं भी डुपली जहां सरस्वती के मन्दिर में ये अंधेर चलता हो तो विद्यार्थी में वहां से राष्ट्रीय भावना कैसे विकसित होगी? कैसे उनका जीवन परोपकार का मन्दिर बनेगा? कैसे वे आपको अन्तिम समय समाधि देने वाले बनेंगे. आप क्या उनसे अपेक्षा रखते हैं? इसीलिए कहा. “नोट एज्युकेसन बट करेक्टर, जो चरित्र का निर्माण करे वह ज्ञान चाहिए. पेट भरने के लिए कला सीख ले या जगत को ठगने की विद्या आ जाये, उससे कोई आत्म कल्याण नहीं होगा. बच्चों को धर्म संस्कार घर पर दे. अपने घर को स्कूल जैसा बनाये, बच्चों का विचार आप स्वयं बनें. तब बच्चों के जीवन का निर्माण होगा. स्कूल के भरोसे आप न रहें. सर्वमंगल मांगलयम् सर्व कारनम्; प्रधान सर्व धर्माणाम् जैनंजयति शासनम् 443 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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