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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी आज यह दृढतर है, यह हमारे राष्ट्र के गौरव का विषय है. हमारे पास नहीं रहा. इसलिए राष्ट्र की यह दशा है, सरकार पाने के लिए धार्मिक संस्कार लेना जरूरी है. ज्ञान ऐसा लेना चाहिए जो विषय वासना से आपको मुक्त कर दे. आपके अन्दर की हृदय की कटुता बैर-विरोध से आपको दूर कर दे. और जगत से इस आत्मा को स्वतन्त्र करे. वह ज्ञान चाहिए. अब वह ज्ञान यहां नहीं मिलेगा. किसी यूनिवर्सिटी में उसका दुष्काल है. राजस्थान के एक स्कूल में एक रात्रि में ठहरा तो रात्रि में मास्टर जी आये. जरा परिचय भी था. उन्होंने कहा महाराज कोई असुविधा हो तो हमें कहना. बडे सज्जन व्यक्ति थे. बैठे-बैठे मैंने उनसे पूछा-“कैसा चलता है आपके स्कूल के अन्दर?" उन्होंने जबाव दिया–“सरस्वती के मन्दिर में भी अंधकार है." मैने कहा-"ज्ञान के प्रकाश में अन्धकार कैसे आया. अन्धकार के आने का साहस कैसे पैदा हुआ? प्रकाश के अभाव में अन्धकार आता है, जब वहां प्रकाश मौजूद है, वहां अंधकार कैसे आया?" "महाराज, क्या बतलाएं, यही तो सत्य है जो मैंने आपसे कहा.” ___ उन्होंने बडी सुन्दर हकीकत मुझ से कही. कुछ दिन पहले हमारे यहां इन्सपैक्टर साहब आ रहे थे, निरीक्षण के लिए हमारे यहां कागज आ गया, सूचना आ गई. हमने ऐसा सुन रखा था, जरा धुनी दिमाग के हैं, क्रेक माइन्ड आदमी हैं, स्वागत सुन्दर करना, हमारे साथियों ने यह सूचना दी. ताकि स्कूल के विषय में अभिप्राय देकर जायें. उसी हिसाब से तैयारी की. बच्चों को कहा-अच्छे कपड़े पहन कर आना. माला लेकर आना. इन्सपैक्टर साहब के नाश्ते की तैयारी भी कर ली. इन्सपैक्टर आये, बिल्कुल निश्चित तारीख पर आये, समय पर आये. जैसे ही जीप से उतरे हमारा भी परिचय नहीं था, उनके स्वागत में हम तैयार थे. माला पहनाई. खुश करके उनको लाया. कक्षा में निरीक्षण के लिये गये. एक बच्चे से पूछा-“बच्चे मेरे प्रश्न का जबाव दो.” बच्चों ने बड़ा सुन्दर जबाव दिया इन्सपैक्टर खुश हुए, हंसते हुए बाहर आये. हमने सोचा स्कूल के परिणाम सुन्दर होगे, बच्चों के जबाव से भी खुश हैं, हमारे स्वागत से भी प्रसन्न हैं, जाते-जाते कुछ वरदान देकर के जायें तो ठीक है. वहां से निकल करके नई कक्षा में गये. वहां पर एक बच्चे से इन्सपैक्टर ने प्रश्न किया. वही प्रश्न किया. संयोग, बच्चे ने खड़े होकर जब जबाव दिया, इन्सपैक्टर ने कहा "तुम तो सेवेन्थ क्लास में थे. नाइन्थ मे कैसे आये?" “वह मत पूछिये." "नहीं, नहीं, मुझे पूछना है. मैंने अभी तुमको सातवीं कक्षा में देखा. तुम नौंवी कक्षा में कैसे आ गये. मेरे प्रश्न का तुमने वहां भी जवाब दिया और यहां ही तुम ही जबाव / 442 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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