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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी यह ज्ञान आपको बाहर स्कूल या यूनिवर्सिटी में नही मिलेगा. यह तो साधु सन्तों के मार्ग दर्शन से ही प्राप्त होगा. चरित्र का निर्माण करें, वह ज्ञान चाहिए. देश से अंग्रेज चले जायें परन्तु दिलो दिमाग पर अंग्रेज रहें, ऐसा कोई उपाय शिक्षा से इन्हें जरूर दिया जाये, गुलामी के संस्कार दिया जाये. ऐसा भाषा ज्ञान सिखाया जाये कि इनमें विकृति आ जाये. उसी का यह वर्तमान परिणाम है कि हमारे यहां राष्ट्रीय भावना विकसित नहीं हो रही है, क्योंकि बचपन से ही विदेशी भाषा का संस्कार दिया गया. वहां की सभ्यता का परिचय दिया गया. अपनी संस्कृति का हमें गौरव नहीं रहा. विवेकानन्द जब अमेरिका गये, उनके शब्दों में गर्जन था, चाल में कंपन था. जब किसी व्यक्ति ने पूछा-अपनी संस्कृति की आप इतनी बड़ाई करते हैं, पांव में जूता अमेरिकन और साफा सिर पर भारतीय है. पूरे अमेरिकन हो गये. क्या एतराज है? विवेकानन्द ने जवाब दिया - "तुम किसलिए चिन्ता करते हो. यह कोई समस्या नहीं, पांव मेरे नौकर हैं यदि कोई अमेरिकन हो जाये मुझे क्या आपत्ति, मालिक भारतीय रहेगा. विचार धारा भारतीय होगी. जरा गौर करिये.. किसी अंग्रेज पादरी ने उनको घर पर बुलाया. बडा सुन्दर स्वागत किया परन्तु मन में कपट था. घर पर बुलाकर उनका सम्मान किया. विदाई का समय जब आया, पादरी ने कहा-देखिये कैसा विचित्र संयोग! टेबल पर बहुत सी पुस्तकें पडी थीं, सबसे ऊपर बाइबल था. विवेकानन्द जैसे ही वहां से जाने लगे, उसने कहा-"आपकी गीता एकदम नीचे पड़ी है और हमारी बाइबल एकदम ऊपर है." पुस्तकों के ढेर लगे थे. विवेकानन्द ने हंसते हुये कहा-"आप क्यों चिन्ता करते हैं, यह तो आनन्द का विषय है, मेरी एक प्रार्थना है आप ध्यान रखना. नीचे से आप गीता मत निकालना, नहीं तो बाइबल गिर जायेगी." जैसा प्रश्न वैसा जवाब. उस व्यक्ति के व्यंग्य का इस प्रकार जवाब दिया. अपनी भाषा का अपने को गौरव होना चाहिए. अपनी संस्कृति-संस्कार का स्वाभिमान होना चाहिए. तब जाकर के राष्ट्रीय भावना विकसित होती है. उसमें सद्भाव पैदा होता है. अनेक में भी एकता का दर्शन होता है. यही तो महावीर की "थ्योरी आफ रिलेटिविटी" है. जो "सापेक्षवाद” कहा गया. महावीर का दर्शन है. अनेकता में एकता का दर्शन और एकता में अनेकता का परिचय. यह आप को आज की शिक्षा में नहीं मिलेगा. विदेशी भाषा, वही संस्कार. एक जमाना था. डेढ सौ वर्ष अग्रेजों ने राज किया और एक भी अंग्रेज ने धोती पायजामा नहीं पहना परन्तु सारे भारत को पैन्ट सूट पहनाकर चले गये. हम बदल गये, वे नहीं बदले. सारे देश की संस्कृति को विकृत बना चले गये. वे अपने संस्कार में दृढ़ रहे. 441 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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