________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी उदारता का परिचय प्राप्त करें. उनका धर्म इतना संकीर्ण नहीं है, मुझे माने, मुझे नमस्कार करे, तभी कल्याण होगा. ___ मेरी उपेक्षा करेंगे तो आप दुर्गति में जायेंगे. यह सर्टिफिकेट हमारे यहां नहीं दिया जाता. हर व्यक्ति अपने कर्म के अधीन होता है, अपने परिणाम के अनुसार, हृदय के विचारों के अनुसार, कर्म का अनुबन्ध करता है. उसके अनुसार ही संसार की सजा प्राप्त करता है. पूण्य का इनाम मिलता है. जैसे हम कार्य करेंगे. वैसा ही फल मिलेगा. धर्म को हमने साधना बना लिया, जगत की प्राप्ति का साधन बना लिया. कहां तक अंध विश्वास में हम पड़े रहेंगे. आप महावीर के उपासक हैं, हमारी संस्कृति पुकार पुकार के कहती है-तुम भिखारी नहीं सम्राट बनने के लिए आये हो. कभी परमात्मा के पास संसार की याचना या दरिद्रता लेकर न जाओ. कभी साधु पुरुषों के पास कामना, वासना, लेकर न जाओ कि आपके आशीर्वाद से भौतिक समृद्धि आये. आशीर्वाद दो और कल्याण हो जाये तो कर्मवाद को कौन मानेगा? गुरु जनों के पास मार्ग दर्शन किया जाता है, उनका आशीर्वाद इसीलिए लिया जाता है. मेरे अन्तर में सदभाव उत्पन्न हो, मेरे विचार की शुद्धि से मेरी आत्मा को मुक्त कर दे, मेरे सारे विचार मंगलमय बन जायें. मेरा संसार स्वर्गमय बने. मेरे परिवार का प्रेम प्राणी मात्र तक व्यापक बने. प्रेम की भूमिका मुझे मिल जाये. मेरी आराधना, साधना स्व से व्यापक तक बन जाये. कोई व्यक्ति कोई प्राणी बाकी न रहे. इसी में मेरा कल्याण होने वाला है. इसे संकीर्ण न बनाये. यह कोई व्यापार का साधन नहीं. धर्म स्थान कोई विजनेस सेन्टर नहीं है कि भगवान मैं तुझे इतना देता हूँ, तू मुझे इतना दे. यह अन्ध श्रद्धा है कुछ नहीं मिलेगा. मांगना बन्द कर दीजिए. बिना मांगे मिलेगा, याचना नहीं. आप सोचकर के चलिए. बहुत सी बातें ऐसी होती हैं, धर्म को इतना विकृत बना दिया जाता है, इतना सस्ता बना दिया जाता है. हनुमान जी के सामने गये, दो पेड़े चढ़ाये. हनुमान जी क्या अंगठा छाप हैं? दो पेड़े में सवालाख आपको दे देंगे, तेल का भाव भी बढ़ गया है एक छंटाक तेल दे और एक क्विंटल तेल की याचना करे. वह इतने भोले नहीं वह तो सिद्ध पुरुष हैं, जैन परम्परा में हनुमान तो मोक्ष गये. कभी ऐसा विचार न करे हमारे यहां ऐसी विचार धारा लेकर बहुत सारे व्यक्ति चलते हैं. सेठ मफतलाल दिल्ली से गये थे. यहां से जब गये तो अचानक अहमदाबाद जाने का विचार आया. लोग समझते हैं कि एक डुबकी लगायें और पाप का प्रक्षालन हो जायेगा बहुत सस्ते में अगर पुण्य मिलता है, उसे छोड़ना नहीं. मुफ्त में मिलता है तो जरूर ले जाना, इतने सस्ते में पुण्य मिलता होता, स्वर्ग मिलता होता, तब तो महावीर को राज्य छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ती. नानक हरिद्वार में स्नान कर रहे थे. स्नान करते-करते एक व्यक्ति आया प्यास लगी थी, साधन था नहीं, अंजुली लेकर हाथ से पीने लगा, असुविधा हुई. नानक ने कहा "मैने लोटा मांजकर के स्वच्छ किया है इससे पानी पी लो." 436 For Private And Personal Use Only