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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - गुरुवाणी: प्रेम का आकर्षण, जो सारे जगत की, प्राणि-मात्र की सदभावना में प्राप्त करने वाला बनूं, लोगों को प्रेम और विश्वास संप्रदान करने वाला बनूं, इस तरह का हमारे जीवन में प्रयत्न होना चाहिए भूतकाल से वर्तमान काल तक का परिचय दिया. किस प्रकार अपना सुन्दर उज्ज्वल भूतकाल रहा. परमात्मा ने कितने सुन्दर विचार आप के सामने रखे. परमात्मा के विचार के मंगल प्रकाश में अपनी जीवन यात्रा आरम्भ करें तो अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पायेंगे. धर्म को बदनाम करने का, अपनी आत्मा को कलंकित करने का, कभी प्रयास न करें. परमात्मा ने अभी सांप्रदायिकता का परिचय धर्म के माध्यम से नहीं दिया. “धारणात् धर्म उच्यते” धर्म उसे कहा गया जो आत्मा का रक्षण करे. आत्मा को धारण करे. वह धर्म कहलाता है. दुर्विचार से आत्मा का रक्षण करे, दुर्गति में जाते हुए आत्मा का रक्षण करे, तब वह धर्म कहलाता है, आप क्या धर्म का रक्षण करेंगे? धर्म आपका रक्षण करता है, धर्म इतना कमजोर नहीं कि आप फूंक मारे और उड़ जाय. वह शाश्वत तत्व है. वह परम तत्व है. निश्चित सत्य है. उसमे कोई असत्य नहीं. सभी आत्माओं के कल्याण के लिए है. नवकार मन्त्र का परिचय इसीलिए दिया. कोई संप्रदाय नवकार में नही मिलेगा. कोई व्यक्ति का दर्शन आपको नवकार महामन्त्र में नहीं मिलेगा. कोई प्राणिवाद, कोई भाषा वाद, जगत का कोई विवाद, आपको नवकार के दर्शन में नहीं मिलेगा. वह पूर्ण रूप से निरपेक्ष है. जिस आत्मा में ये गुण मौजूद हों, उसे मैं वन्दन करता हूँ, सीधी सी बात है. महामन्त्र की बड़ी विशेषता है, जहां साधुता का दर्शन हो, जहां चरित्र संपन्न जीवन हो, जहां जिज्ञासानुसार जीवन का आचरण हो. ऐसे साधु पुरुषों को मैं भावपूर्वक वन्दन करता हूँ. समस्त साधुओं को वन्दन करता हूँ "नमो लोए सव्व साहुण” में नही लिखा कि "नमो लोए मम साहुण" अपने साधुओं को वन्दन करूं. अन्य को नहीं. शब्द की विशालता और उदारता को देखिये. महावीर का दर्शन, जगत का सबसे बड़ा दर्शन है. इतनी उदारता परमात्मा महावीर ने दी, आज तक किसी व्यक्ति के जीवन में वैसी उदारता नजर नहीं आई. वह उदारता उनके जीवन में व्यावहारिक थी. मात्र शब्दों से नहीं, उन्होंने अपने आचरण से धर्म को प्रकट किया है. मौन की भाषा में सारे जगत को उपदेश दिया है. निशब्द की भूमिका पर उनकी साधना की भूमिका का परिचय मिलता है परमात्मा का यदि स्मरण करें तो सुगन्ध मिलेगा. मन के अन्दर एक संगीत का अनुभव प्राप्त होगा. महावीर का जीवन संपूर्ण मंगलमय, सारे जगत के कल्याण की कामना लेकर चलता था. यह नहीं कहा-मेरे मानने वालों का कल्याण हो. दुसरे दुर्गति में जायं जगत के जीव मात्र का कल्याण हो, कहने वाले महावीर परमात्मा थे. उनके दर्शन के पहले 435 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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