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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी मफतलाल अन्दर थे, जैसे ही प्रसाद चढ़ाया और उसकी खुशबू आई, मुंह में पानी छूटा. शाम तक भूखे बैठे थे, संयोग. मन में सोचा अगर उठा कर खाता हूँ तो मेरा पुरुषार्थ हो जाता है. मैं आज भाग्य की परीक्षा के लिए आया हूँ, थोड़ा इन्तजार और करूँ. कोई खिलाने वाला आता है या नहीं. बैठा रहा माल सामने था. रात्रि के ग्यारह बजे चोर चोरी करके आये थे, काफी माल बटोर करके आये थे. दीपक का प्रकाश मन्दिर के बाहर देखा. चोरों में शंका आई. क्या पता यहां कौन है? मन जरा शंकित था. परन्तु जैसे ही मन्दिर में गये, देखा कोई नहीं. सोचा किसी भक्त ने आकर के प्रकाश किया होगा. प्रकाश में देखा कि बहुत सुन्दर प्रसाद चढ़ा है, बहुत सुन्दर मिठाई रखी थी, सवा मन प्रसाद था. राजा के यहां क्या कमी, पुत्र जन्म की खुशी में रखाया गया. मन में विचार किया ऐसे जंगल में यहां मिठाई लाने वाला कौन हो सकता है? कोई षडयन्त्र हो, यह सारा जहरीला हो. यदि हम खा लें और खत्म हो जायें और सारा माल एक व्यक्ति ले जाये ऐसा कोई षड्यन्त्र तो नही है? मन में शंका थी, शंका के निवारण के लिए तो कोई मन्त्र है नहीं. एक व्यक्ति ने वहां बात की इतनी मिठाई! आज तक इस मन्दिर में कभी कोई चीज नजर नहीं आई, आज सवा मन मिठाई यहां पड़ी है, जरूर कोई षडयन्त्र होना चाहिए. भूख बहुत लगी है, खाने की इच्छा भी है परन्तु शंका है, उसका निवारण कैसे कराना है. दूसरे ने कहा-इसमें क्या विचार करते हो. बाहर कत्ता कि बिल्ली हो तो उन्हें जरा खिलाकर देख लो रात्रि में कहां कुत्ता बिल्ली मिले. एक व्यक्ति अन्दर आया देखा कि अन्दर मफतलाल बैठा है ध्यान, में. इन्तजार में थे कोई खिलाने वाला आये तो आ गया. चोर इतने प्रसन्न हुए बाहर आकर साथियों से कहा-कहाँ जाते हो? किसी कुत्ते बिल्ली की जरूरत नहीं, एक एक व्यक्ति अन्दर आया और सब कुछ उसे खिलाने लगे. खाते-खाते हैरान. उन्होंने मुंह में डालना शुरू कर दिया. __ मफतलाल कहता है-बड़े जोर का मेरा प्रारब्ध है, मिठाई भी आ गई, खिलाने वाला भी आ गया. हाथ जोड़कर कहता हूँ, भाई, माफ करो. मेरा पेट भर गया. इससे ज्यादा मुझे मत दो. उन्होंने कहा किसी से बात मत करना, माल लाया हूँ, तुझे भी देता हूँ. मिठाई भी मिली और माल भी मिला. ज्ञानियों ने इसे प्रारब्ध कहा. प्रारब्ध का निर्माण व्यक्ति करता है. भूतकाल में जैसा कार्य आपने किया उसी कार्य के अनसार वर्तमान में प्रारब्ध का निर्माण हुआ जिसे आप भाग्य कहते हैं. पुण्य का आकर्षण ऐसा होता है कि सहज में सम्पत्ति मिल सकती है. आप प्राप्त कर लेते हैं, पुण्य बल ऐसा होना चाहिए. जो हम लोगों की सद्भावना को आकर्षित करे. 434 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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