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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी से होता है, कल का पुरुषार्थ वर्तमान काल का प्रारब्ध है, वर्तमान का पुरुषार्थ भविष्य के प्रारब्ध का निर्माण करने वाला है. मानव स्वयमेव ही भाग्य का निर्माण करता है. परमात्मा निर्माण नहीं करते, वह आपके द्वारा ही निर्मित होता है. ____ “उन्होंने कहा-तुम्हारा पुरुषार्थ इतना सुन्दर कि जिसको लेकर वर्तमान का सुन्दर भाग्य तुम्हें मिला है. "महाराज! मैं इसकी परीक्षा कर सकता हूँ?" "करो, कोई आपत्ति नहीं. विचार में पड़ गया कि “महाराज मेरे भाग्य में आपने क्या देखा. अगर मै बैठा रहूँ, भूखा हूँ तो खाना मिल जायेगा?" "जरूर मिलेगा." "महाराज! हाथ से उठाकर खाऊँ वह भी तो पुरुषार्थ है. क्या मेरे मुंह में डालने वाला कोई मिल जायेगा?" "वह भी मिल जायेगा. इतना जोर का तुम्हारा भाग्योदय चल रहा है." मै इसकी परीक्षा करूं. दो चार दिन बाद मफतलाल सेठ निकले गांव से बहुत दूर चले गये, जंगल में चले गये. वहां एक देवी का मन्दिर था. जहां किसी त्योहार पर लोग जाया करते थे. अपनी मान्यता लेकर, ऐसे कोई जाते नही थे. भयानक जंगल दिन में कोई जाये तो भी भय लगे. मफतलाल गया कि मो मेरे भाग की मझे मेरे भाग्य की परीक्षा करनी है. भाग्य क्या है? प्रारब्ध किसे कहा जाता है? जरा उसका आज व्यावहारिक रूप से परिचय प्राप्त कर . सुबह जाकर के उस मन्दिर में ध्यानस्थ बैठ गया. एकाग्रचित होकर के बैठ गया. कसौटी समझ कर बैठा रहूँगा. और देखता हूँ, मेरा प्रारब्ध क्या कार्य करता है? सारा दिन निकल गया, संध्या का समय हुआ, भूख लगी, हताश हो गया, निर्णय में पड़ा रहा. चौबिस घन्टे तो मुझे मेरे भाग्य की परीक्षा करनी है. बैठा रहा, शाम का समय हुआ. संयोग देखिये, वहां के राजा को पुत्र का जन्म हुआ. पुत्र के जन्म के बाद राजा की एक प्रतिज्ञा थी, मन में एक विचार था, जिस दिन मेरे घर बालक का जन्म होगा. देवी के यहां सवा मन प्रसाद मैं चढाऊंगा. यह प्रसाद अतिसुन्दर होगा और उसके बाद मैं भोजन करूंगा. सर्वप्रथम में निर्णय किया हुआ था. शाम के समय पुत्र का जन्म हुआ, अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि जाओ सवा मन मिठाई लेकर के आओ, देवी के मन्दिर में यह प्रसाद चढा करके आओ. राजा का आदेश सैनिकों ने शिरोधार्य किया. मफतलाल भखे बैठे थे. इन्तजार में थे. कोई खिलाने वाला दाता मिल जाता. परन्तु अपने विचार में दृढ थे जैसे ही वहां पर प्रसाद गया, वहां धूप दीप लेकर देवी के समक्ष अर्पण कर दिया. आदमी तो चला गया, उसे नहीं मालूम था, अन्दर कोई बैठा है. - 433 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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