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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी है, ममत्व को लेकर के जीवन जी रहा हूँ, ऐसा ग्रेविटेशन है, मुझे ऊपर जाने ही नहीं देता. उसी वर्तल में फंसा हूँ. परमात्मा जिनेश्वर की देशना सनता हूँ फिर भी कैसा पापी हूँ, अभी तक संसार के मोह जाल में फसा हूँ, संसार नहीं छूट पाया, इस बात का कष्ट है." "आपने मुझे गलत समझ लिया रोज प्रतिदिन घर के अन्दर हिंसा करता हूँ. खाने में, बोलने में, पीने में, चलने में, अपने व्यवहार में, जहां भी आप नजर करेंगे, संसार बिना हिंसा के चलता नहीं, पूर्ण रूप से अहिंसा का पालन मेरे जीवन में नहीं हो पाता. परमात्मा ने जो राजमार्ग बतलाये अभी तक उसमें मेरा चलना प्रारम्भ नहीं हुआ. इसी बात का मेरे अन्दर कष्ट है. आप मुझे क्षमा करें मुझे धार्मिक न कहें. मेरे जैसा पापी संसार में खोजने पर भी दूसरा नहीं मिलेगा." आत्मा का कष्ट देखिए, आपका मन परमात्मा की वाणी श्रवण करने के बाद संसार से विरक्त नहीं बना. कैसा दर्द था उन आत्माओं का. हमारे हृदय में तो इस बात का पश्चात्ताप भी नहीं है, अफसोस भी नहीं है, मैंने भूल की, मुझ से अपराध हो गया, अन्तर हृदय से कम से कम दर्द भी अगर पैदा हो जाये तो भी मैं आप को धन्यवाद दूं कि आप पुण्यात्मा हैं, कम से कम पाप का दर्द तो है, पाप का पश्चात्ताप तो है. अपने जीवन में तो हम पाप की वकालत करते हैं. धर्म के नाम से लड़ने की बात करेंगे. धर्म कभी लडना सिखाता हैं? धर्म इतना कमजोर है? अपनी आदत से हम लाचार, बहुत सारे व्यक्ति कहते हैं-मैं धर्म का रक्षण करने वाला हूँ, बहुत से व्यक्तियों के शब्द इतने दुर्गन्धमय मिलेंगे-मैं धर्म का रक्षण करने वाला, समाज के शासन का रक्षण करने वाला हूँ, धर्म का आप क्या रक्षण करेंगे, अपना ही रक्षण कर लें तो भी धन्यवाद. जो आत्मा हृदय में धर्म का रक्षण करता है, हृदय में भाव पूर्वक धर्म को ग्रहण करता है: "धर्मो रक्षति रक्षितः वह आत्मा धर्म के माध्यम से, धर्म के पुण्य प्रभाव से अपने जीवन का स्वतः रक्षण प्राप्त करता है. जरा अर्थ को अच्छी तरह आप समझिये, हम आज तक उसके रहस्य को समझे नहीं, आप क्या धर्म का रक्षण करेंगे. अपनी दुकान मकान को बचा लें, तो भी बलिहारी है. धर्म क्या इतना कमजोर है कि आप पर आश्रित है. जो शाश्वत है, कभी नष्ट होने वाला नहीं जो कभी भ्रष्ट होने वाला नहीं, जिसमें कभी जगत की अपवित्रता आने वाली नहीं जो परिपूर्ण है, शाश्वत सत्य है, आप क्या उसका रक्षण करेंगे? क्या परमात्मा इतना कमजोर है? आपके रक्षण पर आश्रित है. यह लोगों को बहलाने की आदत है, मैं धर्म का रक्षण करने वाला, साम्राज्य का रक्षण करने वाला हूँ. 431 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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