SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 459
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %-गुरुवाणी थी. वैसे परम परिश्रावक राजगृह नगर में निवास करते थे. सम्राट् श्रेणिक ने जब सुना मेरे राजगृह नगर के अन्दर ऐसी महान आत्मा निवास करती हैं, गृहस्थ जीवन में भी उनका आदर्श साधु जैसा है, उन आत्माओं का मैं दर्शन कर कृतार्थ बनूं. मेरे नेत्र उससे निर्मल बन जायें सम्राट श्रेणिक स्वयं वहां पर गया. सामायिक में बैठे थे, सर्वज्ञ ने जो चीज दी वहां संदेह का तो स्थान ही कहां रहा. जगत का सबसे बड़ा सर्टिफिकेट. सर्वज्ञ का कथन पूर्ण सत्य होगा. जो ज्ञान से देखा वही होगा. यथार्थ होगा, उसी समय वहां जाकर के उनका अभिवादन किया उन्हें नमस्कार किया, और कहा मैं धन्य बना. मेरी नगरी पावन हुई, आप जैसे पुण्यशाली धर्मात्मा पुरुष मेरे नगर आए. ऐसी प्रजा को पाकर के मेरा जीवन तो कृतार्थ हुआ. ___ एक पुण्यशाली आत्मा के जो गुण थे, उनका अन्तर से अनुमोदन किया. सम्राट् श्रेणिक, इतने बड़े मगध देश का सम्राट, वह सम्राट जब वहां पर गया हृदय से उनका अभिवादन किया. आप जैसे व्यक्ति के लिए ऐसे राजा आ जायें, आपका अभिवादन करें तो बिना पिए ही आप को नशा चढ जाए. इतना बड़ा सम्राट् मेरा अभिवादन कर रहा है. जगत की दृष्टि में बड़ा धार्मिक हूँ, आनन्द श्रावककामदेव श्रावक पुण्यात्मा श्रावक. ये सब आगमों में वर्णित श्रावक हैं. उन महान आचार्यों ने इस गृहस्थ का जीवन चरित्र लिखा, उनका गृहस्थ जीवन कितना आदर्श होगा, आप जरा देखिए. नहीं तो त्यागियों को क्या आवश्यकता कि गृहस्थ का जीवन चरित्र लिखें लिखने का प्रयोजन आने वाले गृहस्थों को इनके जीवन से प्रेरणा मिले. उनका गृहस्थ जीवन पवित्र बने. उनका जीवन आचार से सम्पन्न बने, विचार का वैभव प्राप्त करे, इस मंगल भावना से उन त्यागियों ने आश्रम में ऐसे श्रावकों का वर्णन किया. सम्राट् श्रेणिक ने जैसे ही उनका अभिवादन किया, धन्यवाद दिया. आनन्द, कामदेव पुण्यात्मा जैसे श्रावक रो पड़े. आंसू निकल आये, चेहरा एकदम उतर गया. उदासीन बन गये. सम्राट ने कहा मैंने आपका कोई अविनय तो किया नहीं, मैंने आपके साथ कोई गलत व्यवहार किया नहीं, मैं समझ नहीं पाया, आपके आंसुओं का कारण क्या है? मैंने तो आपकी स्तुति की, आपके गुणों का अभिवादन किया. ये किस दर्द के आंसू हैं? पुण्य श्रावक आनन्द श्रावक ने कहा राजन्! यह आपकी प्रशंसा मेरे लिए पतन बन न जायें. आप ने मेरे बाह्यगुण देखे होगें, मै मन में पश्चात्ताप करता हूँ. परमात्मा जिनेश्वर की वाणी अगर कोई एक बार भी श्रवण कर ले, संसार से विरक्त हो जाये, संन्यास ग्रहण कर ले, वह कभी सेन्ट्रल जेल में रहना पसन्द नहीं करेगा. वह मुक्त वातावरण में रहने लग जायेगा. ____ “मैंने कोई ऐसा पापकर्म भूत काल में किया होगा. क्या पता कैसा चरित्र मोहनीय कर्म मै उपार्जन करके आया हूँ. मेरे ऊपर मेरा साम्राज्य नहीं, मोह राजा का साम्राज्य 430 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy