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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गुरुवाणी हमारे यहां शब्दों से नहीं परन्तु आचरण से धर्म को प्रकट किया गया. व्यावहारिक बतलाया गया. जिस नवकार से हमारे हृदय की शुद्धि होने वाली है, जो नवकार हमारे लिए अमृत तुल्य माना गया. अनन्त परमेश्वरों को उस के द्वारा वन्दन किया जाता है. जिस आत्मा में अरिहंत का गुण होगा, जिस आत्मा में निर्मलता, पवित्रता होगी, जो आत्मा भविष्य में मोक्षगामी होगी, जिन आत्माओं के अन्दर आचार की सम्पन्नता होगी, जिन आत्माओं में साधुता का गुण विद्यमान होगा, उन आत्माओं को एक बार नहीं अनन्त बार से वन्दन करता हूँ, नमस्कार करता हूँ. अपने जगत के किसी भी मन्त्र में यह विशेषता देखी? कैसी अपूर्व विशेषता, किसी संप्रदाय का नाम नहीं, किसी मत पंथ का नाम नहीं, किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं. महावीर से लेकर ऋषभदेव तक किसी तीर्थंकर का नाम नहीं. अरिहन्त जिसने अन्तर शुत्रओं पर विजय प्राप्त कर लिया, जो महान विजेता बन गया, जग के उस महान विजेता, उस परम पुरुष परमात्मा को वन्दन करता हूँ अन्तर शत्रु क्रोध, मन, माया, लोभ इन कषायों पर जिसने विजय प्राप्त कर लिया उस विजेता को मै नमस्कार करता हूँ जो संसार से सर्वथा मुक्त बन गये, संपूर्ण कर्म का अवशेष भी जिनका नष्ट हो गया, सम्पूर्ण शुद्धात्मा, सिद्धात्मा उन पुरुषों को वन्दन करता हूँ, वन्दन भी किस प्रकार. भूत, भावी, वर्तमान काल की अपेक्षा से. उनके द्वारा आपने धर्म प्राप्त किया परन्तु उसको अगर आप सामाजिक रूप देंगे. इस प्रकार व्यावहारिक रूप से उनको प्रतिष्ठित करेंगे. तो गलत है. सभी साधुओं के लिए मेरा द्वार खुला है, कोई भी साधु भगवन्त आयें, मेरा अभिवादन है. यह विशाल दष्टि आनी चाहिए, अभी तक यह आई नहीं. आपका चेहरा ही साक्षी दे रहा है, वह प्रसन्नता, उदारता आज हमारे जीवन में नहीं. एकता की बड़ी बातें करते हैं परन्तु हमारे जीवन में एकता का नामो निशान नहीं, ऐसी एकता में मेरा विश्वास नहीं, यह तो एक प्रकार का नाटक है. संप्रदाय हमारे लिए उपकारक होगा. हमारे जीवन की एक व्यवस्था है, अनशासन है. हमारे पूर्व के आचार्यों ने एक व्यवस्था दी है. उसका आदर करना. सम्मान करना. उसके अपूर्व जीवन का संपूर्ण व्यवहार पालन करना. उसको विकृत मत बनाना. उसे हम विकृत कर रहे हैं, दूसरों के प्रति घृणा प्रकट कर रहे हैं, अवर्णवाद बोलते हैं, नहीं बोलने जैसा अभिप्राय दे देते हैं, वह हमारी मर्यादा के विरुद्ध है. __पहले इस उदारता को जीवन में अपनाएं. उसके बाद परमात्मा के वचन पर, परमात्मा जिनेश्वर के विचार पर, बडी गम्भीरता से सोचें परमात्मा के विचार कितने उदार हैं, इस उदारता के लिए ही मैंने आपको परिचय दिया. धर्म से सभी बहुत दूर हैं, कहने को जरूर कहेंगे बड़े धार्मिक हैं. आनन्द और कामदेव परमात्मा महावीर के परम श्रावक थे. परमोपासक थे. ऐसे दस तो परम श्रेष्ठ उपासक माने गये जो ज्ञानियों की दष्टि में मोक्षगामी थे. जिनकी श्रद्धा एकदम सुरक्षित थी, निर्मल पो 429 For Private And Personal Use Only
SR No.008711
Book TitleGuruvani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year1996
Total Pages410
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size20 MB
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